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सू. ८-४-१६२ ] स्वोपज्ञवृत्तिसहितम्
१२१ आङो रभे रम्भ-ढवौ ॥ ८।४।१५५ ।। ___ आङः परस्य रभे रम्भ ढव इत्यादेशौ वा भवतः ॥ आरम्भइ । आढवइ । आरभइ ॥ १५५ ॥
उपालम्भेझङ्ख-पच्चार-वेलवाः ॥ ८।४।१५६ ॥ उपालम्भेरेते त्रय आदेशा वा भवन्ति ॥ झङ्ख। पच्चारइ । वेलवइ । उवालम्भइ॥१५६ ॥
__ अवेर्जुम्भो जम्मा ॥ ८।४।१५७ ।। जृम्भेर्जम्मा इत्यादेशो भवति वेस्तु न भवति ।। जम्भाइ । जम्भाअइ । अवेरिति किम् । केलि-पसरो विअम्भइ ॥ १५७ ॥
भाराकान्ते नमेणिसुढः॥ ८।४।१५८ ॥ भाराकान्ते कर्तरि नमेर्णिसुढ इत्यादेशो भवति ॥ णिसुढइ । पक्षे । गवइ । भाराक्रन्तो नमतीत्यर्थः ॥ १५८ ॥
विश्रमणिव्वा ॥ ८।४।१५९ ॥ विश्राम्यतेर्णिव्वा इत्यादेशो वा भवति ॥ णिव्वाइ । वीसमइ ॥१५९॥
आक्रमेरोहावोत्थारच्छन्दाः ॥ ८।४।१६० ॥ आक्रमतेरेते त्रय आदेशा वा भवन्ति ॥ ओहावइ । उत्थारइ । छुन्दइ । अक्कमइ ॥ १६०॥
भ्रमेष्टिस्टिल्ल-ढुण्दुल्ल-ढण्डल्ल-चक्कम्म-भम्मड-भमड-भमाडवलअण्ट-झण्ट-झम्प-भुम-गुम-मुम-मुस-ढुम-दुस-परी-पराः॥८।४।१६१॥ ___ भ्रमेरेतेष्टादशादेशा वा भवन्ति ॥ टिरिटिल्लइ । ढुण्डुल्लइ । ढण्ढल्लइ । चक्कम्मइ । भम्मडइ । भमडइ । भमाडइ । तलअण्टइ । झण्टइ । झम्पइ । भुमइ । गुमइ । फुमइ । फुसइ । दुमइ । दुसइ । परीइ । परइ । भमइ ।१६१।
गमेरई-अइच्छाणुवज्जावज्जसोकसाकुस-पच्चड्ड-पच्छन्दणिम्मह-णी-णीण-णीलुक्क-पदअ-रम्भ-परिअल्ल-वोल-परि__अल-णिरिणास-णिवहावसेहावहराः ॥८।४।१६२॥ गमेरेते एकविंशतिरादेशा वा भवन्ति ।। अईइ । अइच्छइ । अणुवज्जइ ।
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