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________________ ( ३६ ) जोगीमारा लेख रख सकते है, और दूसरी ओर अशोक की पूर्व की भापा और अश्वघोप की अर्धमागधी को रख सकते है । इन दो बोलियो का एक मात्र भेदक लक्षण श और स का उच्चारण है । इतने कम आधार पर वोलीभद नियत नहीं किए जाते । एक ही बोलीविस्तार मे वोलियो की भेदरेखा खिचते समय हमारे सामने, कुछ अधिक प्रमाण मे और स्पष्ट रूप मे ध्वनिभेद की रेखाएँ होनी चाहिए। बुद्ध और महावीर प्राय एक ही काल मे और एक ही स्थल मे धर्मोपदेश करते थे, इससे दोनो की व्यवहार भाषा भी एक ही होगी। उस प्रदेश की मान्य भापा, जो कि सर्वत्र समझी जाती होगी, उनकी व्यवहार भाषा होगी । अत्यत ग्राम्य प्रयोग उनकी भापा में आने का सभव कम है, और फिर भी जिन आचार्यों ने उनके उपदेशो का संग्रह किया उन्होने भी ऐसे ग्राम्य प्रयोगों को उनके साहित्य मे रक्खा नहीं होगा। इससे ऐसा भी हो सकता है कि श और स दो बोलीविभागो की भेदरेखा न हो किन्तु शिष्टता और ग्रामीणता का सूचक हो । उस प्रदेश का स्वाभाविक उच्चारण श हो, किन्तु शिष्ट उच्चारण स हो, और ऐसी परिस्थिति असाधारण नही । वर्तमान भापाप्रदेशो मे भी ऐसे अनेक उदाहरण मिलेगे । बुद्ध और महावीर उच्च कुल के राजकुमार थे, उनकी रहन-सहन, शिक्षा इ के प्रभाव से शिष्ट प्रयोग ही उनके मुख से हुए हो यह स्वाभाविक है। तब, इस समय मे-ईसा के पहले प्रथम पांच शतको मे-पूर्व की भाषा के बोलीभेद नियत करने के मागधी अर्धमागधी के भेद नियत करने के कोई आधार हमारे पास नहीं । जिस भाषा मे महावीर ने उपदेश किया होगा, वह भाषा, उपरिकथित पूर्व की भाषा के लक्षणो से युक्त भाषा होगी, इतना ही अनुमान हो सकता है। ___ हमने आगे चर्चा की है कि बुद्ध और महावीर के उपदेश उनकी ही भाषा मे मिलना आज सभव नही, बौद्धो की पालि वा मागधी, जैनो की अर्धमागधी, मूल उपदेश की सवर्धित-विवर्धित आवृत्तिया हो हो सकती है, कही अल्प परिवर्तन, कही अधिक परिवर्तन । जैन आगमो की भापा, जिनको सामान्यतया अर्धमागधी कहा जाता है, वह उपरिकथित पूर्व की भापा से दो तरह से भिन्न है। स्थल दृष्टि
SR No.010646
Book TitlePrakrit Bhasha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrabodh Bechardas Pandit
PublisherParshwanath Vidyapith
Publication Year1954
Total Pages62
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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