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________________ की दृष्टि से तो उसमे प्रवेश ही न था, यह बात सुविदित है। अगर यह साहित्य लिपिबद्ध हो जाय तब तो सर्वगम्य हो जाने का भय था, और पुरोहित की मोनोपोली टूटने का भय था। इसी वास्ते इयु प्रजाओ का बहुत सा साहित्य सदियो तक लिपिबद्ध नही हुआ। अन्य प्रजाओ से इयु लोगो ने लिपि का ज्ञान पाने के बाद भी लिपि का प्रयोग न करने मे पुरोहित को धर्माधिकार वृत्ति का अधिक हिस्सा है। शायद इसी लिये, पहले पहल लिपिप्रयोग का आरम्भ पुरोहितप्रधान आर्य परम्परा वाले धर्म से न होकर अधिक उदार दृष्टि के धर्म जैसे कि बौद्ध धर्म से प्रभावित प्रजाओ से होता है। भारत मे भी लिपिप्रयोग सर्व प्रथम अशोक के शासन मे ही हुआ यह इसका सूचक है। ___ जैसे इस भाषा के बारे मे हमारा ज्ञान अत्यन्त मर्यादित है, वैसे इस प्रजा के निवास स्थान के बारे मे इतना ही अज्ञान है। पिछले कुछ साल मे मध्य एशिया मे सशोधन होने से इयु प्रजा वहाँ से होकर भारत मे आई इसका प्रमाण मिलता है, और इसकी कुछ तवारिखे भी तय हो सकती है। ई० पू० १४०० मे मेसोपोटेमिया मे मितन्नि प्रजा के अवशेषो मे आर्य देवताओं के नाम जैसे in-da-ra, u-ru-vana मिलते है, ई० पू० १८०० मे बेबीलोन के विजेता कासाइट की भाषा मे आर्य देवताओ के नाम जैसे Suriyas मिलते है, ये सब आर्य -इयु-प्रजा के एशियाई परिभ्रमण के सूचक है। ई० पू० २००० के अरसे मे इस प्रजा का एशियाई परिभ्रमण का प्रारम्भ हुआ और करीब पांच सौ साल के बाद वह अपने इण्डोइरानियन स्थान पर आ गये। इयु प्रजा के आदिम निवास स्थान के विषय मे भी विवाद है। वस्तुतः, हमारे पास सामग्री इतनी कम है, कि उसका निर्णय हो नही सकता। किन्तु ख्याल तो अवश्य आ सकता है कि ये प्रजाये लिथुयानिया से लेकर दक्षिण रशिया के बीच के प्रदेश मे कही स्थिर रही होगी। यह ख्याल हम इयु गण के सर्वसाधारण शब्दो को लेकर Linguistic paleontology के आधार पर कर सकते है । कोई एक शब्द के आधार पर निर्णय करने के बजाय एक तरह का समग्र शब्दसमूह का अस्तित्व और दूसरी तरह का समय शब्दसमूह का अभाव हमको कुछ दिशा
SR No.010646
Book TitlePrakrit Bhasha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrabodh Bechardas Pandit
PublisherParshwanath Vidyapith
Publication Year1954
Total Pages62
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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