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________________ [66] शक्ति एवम् प्रतिभा दोनों ही शब्दों का काव्यशास्त्र में पूर्ववासना एवम् जन्मान्तरीण संस्कार रूप कवित्वबीज के लिए प्रयोग हुआ है। आचार्य दण्डी एवम् वामन ने पूर्ववासना रूप कवित्वबीज के लिए प्रतिभा शब्द का प्रयोग किया है तथा मम्मट एवम् केशवमिश्र द्वारा कवित्व का बीजरूप पूर्वजन्म का विशेष संस्कार अथवा पुण्य शक्ति शब्द से अभिहित है। अतः शक्ति और प्रतिभा दो भिन्न वस्तुएँ नहीं हैं। विभिन्न आचार्यों जैसे रुद्रट, केशव मिश्र आदि ने तो स्पष्ट शब्दों में कहा है कि शक्ति को ही अन्य आचार्य प्रतिभा कहते है। आचार्य भामह की दृष्टि में नवनवोन्मेषशालिनी प्रज्ञा जो त्रैकालिकी भी हो-प्रतिभा है। गुरू के उपदेश से शास्त्र के अध्ययन में तो जड़बुद्धि भी सफल हो जाता है किन्तु काव्योत्पत्ति के लिए प्रतिभा परम आवश्यक तत्व है। प्रतिभा तथा शक्ति आचार्य दण्डी द्वारा पर्याय रूप में स्वीकृत की गई हैं। पूर्वजन्म से उत्पन्न संस्कार ही नैसर्गिकी प्रतिभा अथवा शक्ति है । यह प्रतिभा गुणानुबन्धि अर्थात् कवि की उत्कर्षाधायक, कवि को सुयशदात्री है। आचार्य वामन भी उस सामर्थ्य को-जिसके कारण काव्य बनता है 'प्रतिभान' कहते हैं 3 यह कवित्वबीजरूप प्रतिभान पूर्वजन्म से प्राप्त वह संस्कार है जिसके बिना काव्यरचना या तो हो ही नहीं सकती, यदि होती है तो उपहासयोग्य ही होती है। भामह, दण्डी, वामन आदि आचार्यों में से किसी ने भी शब्द, अर्थ के मानसिक स्फुरण रूप सामर्थ्य का वर्णन नहीं किया है। उन्होंने केवल एक ही सामर्थ्य को कवित्व का बीजरूप संस्कार 1 गुरूपदेशादध्येतुं शास्त्रं जडधियोऽप्यलम् काव्यं तु जायते जातु कस्यचित्प्रतिभावतः।। 1-5॥ काव्यालङ्कार (भामह) प्रथम परिच्छेद इसी संदर्भ में प्रतिभा का स्पष्टीकरण 'स्मृतिर्व्यतीतविषया मतिरागामिगोचरा, बुद्धिस्तात्कालिकी प्रोक्ता, प्रज्ञा त्रैकालिकी मता। प्रज्ञा नवनवोन्मेषशालिनीम् प्रतिभा विदुः॥ काव्यालङ्कार (भामह) प्रथम परिच्छेद 2 न विद्यते यद्यपि पूर्ववासना गुणानुबन्धि प्रतिभानमद्भुतम्। श्रुतेन यत्नेन च वागुपासिता ध्रुवं करोत्येव कमप्यनुग्रहम् ।1041 [काव्यादर्श (दण्डी) प्रथम परिच्छेद] 3 कवित्वबीजं प्रतिभानम् (1-3-16) कवित्वस्य बीजं कवित्वबीजम् । जन्मान्तरागत संस्कारविशेषः कश्चित्। यस्माद्विना काव्यं न निष्पद्यते, निष्पन्नं वा हास्यायतनं स्यात्। 161 काव्यालङ्कारसूत्रवृत्ति (वामन) प्रथमाधिकरण (तृतीय अध्याय)
SR No.010645
Book TitleAcharya Rajshekhar krut Kavyamimansa ka Aalochanatmaka Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKiran Srivastav
PublisherIlahabad University
Publication Year1998
Total Pages339
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size28 MB
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