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प्रवृत्तियाँ वर्णित हैं। आचार्य राजशेखर द्वारा किया गया भारत का चार भागों में विभाग तथा विभिन्न भागों के जनपदों के नाम नाट्य शास्त्र पर ही आधारित हैं यथा पूर्व देश के अङ्ग, बङ्ग, पुण्ड्र; पाञ्चाल देश के पाञ्चाल, शूरसेन, हस्तिनापुर, काश्मीर, वाहीक; अवन्ति देश के अवन्ती, वैदिश, सुराष्ट्र, मालव, अर्बुद; दक्षिण देश के मलय, मेकल, पाल, मञ्जर तथा महाराष्ट्र आदि जनपद इसी प्रकार नाट्य शास्त्र में भी उल्लिखित हैं । किन्तु आचार्य राजशेखर द्वारा किए गए प्रवृत्ति विवेचन में भारत के चार विभागों के कुछ ऐसे जनपदों का भी नाम लिया गया है, जिनका उल्लेख नाट्यशास्त्र के प्रवृत्ति विवेचन में नहीं है। यथा पूर्वदेश के सुह्य तथा ब्रह्म जनपद, पाञ्चाल देश के बाह्लीक तथा बाह्वलेय जनपद, अवन्ति देश का भृगुकच्छ जनपद तथा दक्षिण देशों के कुन्तल, केरल और वङ्ग देशों का नाट्यशास्त्र में उल्लेख नहीं है । अतः आचार्य राजशेखर का प्रवृत्ति, वृत्ति विवेचन नाट्यशास्त्र पर आधारित अवश्य है, किन्तु उनका भारत के विभिन्न भागों तथा जनपदों का विभाजन अपने समय के देश विभाजन से प्रभावित प्रतीत होता है।
काव्यमीमांसा में काव्यपुरुष के आकर्षण हेतु साहित्यविद्यावधू द्वारा स्वीकृत वेष- विन्यास प्रवृत्ति है । 1 विभिन्न देशों की स्त्रियों की तात्कालिक वेषभूषा इस ग्रन्थ में प्रस्तुत श्लोकों से आंशिक रूप से ज्ञात होती है। पुरुषों की वेषभूषा का स्वरूप श्लोकों में उल्लिखित नहीं है।
पूर्वदेश की औड्रमागधी प्रवृत्ति
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इस वेष विन्यास में स्त्रियाँ उत्तरीय वस्त्र इस प्रकार धारण करती थीं कि घूँघट मस्तक का चुम्बन करते थे तथा बाहुमूल का स्पष्ट प्रदर्शन होता था । अगुरू और सुगन्धित द्रव्य की धूल, चन्दन का लेप, गले से लटकने वाले हार इस वेष के अन्य वैशिष्ट्य थे। पुरुषों का वेष वर्णित न होने पर भी काव्यपुरुष की दशा से अनुमान लगाया जा सकता है कि पुरुषों का वेष कुछ भी धारण करने वाला
1. 'वेषविन्यासक्रम : प्रवृत्ति: '
काव्यमीमांसा (तृतीय अध्याय)
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