SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 29
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ [22] 'काव्यमीमांसा' की रचना के समय भी वह मध्यदेश की इसी महोदय नगरी में थे, यह तथ्य इसी बात से प्रमाणित होता है कि उन्होंने काव्यमीमांसा में प्रस्तुत दिग्विभाग इसी स्थान को केन्द्र मानकर किया है। उन्होंने भारत के उत्तर, दक्षिण, पूर्व, पश्चिम के पर्वत और नदियों का विवरण तो प्रस्तुत किया है, किन्तु मध्यदेश के सम्बन्ध में ऐसी आवश्यकता का अनुभव नहीं करते 2 उनके विचार से मध्यदेश के विवरण सभी को ज्ञात हैं, ऐसा विचार वह मध्यदेश में उपस्थित रहने के कारण ही प्रकट कर सके होंगे। आचार्य राजशेखर की रचनाएँ : संस्कृत साहित्यशास्त्र में आचार्य राजशेखर के सात ग्रन्थों का उल्लेख है नाटक-बालरामायण तथा बालभारत। नाटिका-विद्धशालभञ्जिका। सट्टक-कर्पूरमञ्जरी। काव्यशास्त्रीय ग्रन्थ-काव्यमीमांसा। महाकाव्य-हरविलास। भूगोल विषयक ग्रन्थ 'भुवनकोश' । सम्प्रति उनके केवल पाँच ही ग्रन्थ उपलब्ध हैं। 'हरविलास' तथा 'भुवनकोश' प्राप्त नहीं होते। 1 "विनशनप्रयागयोगङ्गायमुनयोश्चान्तरमन्तर्वेदी। तदपेक्षया दिशो विभजेत" इति आचार्याः। तत्रापि महोदयं मूलमवधीकृत्य इति यायावरीयः। काव्यमीमांसा - (सप्तदश अध्याय, पृष्ठ-239) 2. "तेषा मध्ये मध्यदेश इति कविव्यवहारः। न चाऽयं नानुगन्ता शास्त्रार्थस्य। यदाहु: "हिमवद्विन्ध्ययोर्मध्यं यत्प्राग्विनशनादपि प्रत्यगेव प्रयागाच्च मध्यदेशः प्रकीर्तितः।" तत्र च ये देशाः पर्वता: सरितः द्रव्याणामुत्पादश्च तत्प्रसिद्धिसिद्धमिति न निर्दिष्टम्। काव्यमीमांसा - (सप्तदश अध्याय, पृष्ठ-238)
SR No.010645
Book TitleAcharya Rajshekhar krut Kavyamimansa ka Aalochanatmaka Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKiran Srivastav
PublisherIlahabad University
Publication Year1998
Total Pages339
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size28 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy