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चक्रवर्ति क्षेत्र :- कुमारीद्वीप से बिन्दुसर तक एक सहस्त्र योजन का भाग चक्रवर्ति क्षेत्र कहा जाता है। इस सम्पूर्ण क्षेत्र का विजेता चक्रवर्ती कहलाता है।। कौटिल्य के अर्थशास्त्र में भी चक्रवर्ति क्षेत्र की सीमा यही है -- 'देश पृथ्वी है, उसमें हिमवान् और समुद्र के मध्य का उदीचीन (उत्तरीय) एक हजार योजन परिमाण का सीधा भाग चक्रवर्ति क्षेत्र है। 2 चक्रवर्तिक्षेत्र के सीमा निर्धारण में उल्लिखित विन्दुसर हिमालय का एक गुप्त सरोवर है। यह गङ्गा नदी के उद्गम प्रसिद्ध गङ्गोत्री के स्थान से दो मील दक्षिण की ओर है। सम्पूर्ण चक्रवर्ती क्षेत्र पर विजय प्राप्त करने वाला चक्रवर्ती कहलाता है। आचार्य राजशेखर ने विष्णुपुराण (2/3) और वायुपुराण (45/88) के समान सात चक्रवर्ति चिह्नों का भी उल्लेख किया है। यह चिह्न हैं चक्र, रथ, मणि, भार्या, निधि, अश्व और गज 3
कुमारीद्वीप के सात कुलपर्वत :
'काव्यमीमांसा' में कुमारीद्वीप के सात कुल पर्वतों का भी नामोल्लेख है – विन्ध्य, पारियात्र, शुक्तिमान्, ऋक्षपर्वत, महेन्द्र, सह्य, मलय में
(क) विन्ध्य :- विन्ध्य पर्वतमाला की वह शाखा जिसका नाम सतपुड़ा है। यह ताप्ती और नर्मदा का मध्यभाग है।
(ख) पारियात्र :- कच्छ की खाड़ी की ओर विन्ध्य पर्वतमाला का एक भाग। कुछ विद्वान् इसको हिमालय की शिवालक पर्वतमाला भी मानते हैं।
1. कुमारीपुरात्प्रभृतिबिन्दुसरोऽवधि योजनानां दशशती चक्रवर्तिक्षेत्रम् तां विजयमानश्चक्रवर्ती भवति।
(काव्यमीमांसा - सप्तदश अध्याय) 2. देशः पृथ्वी । 17। तस्यां हिमवत्समुद्रान्तरमुदीचीनं योजनसहस्त्रपरिमाणं तिर्यक् चक्रवर्तिक्षेत्रम् । 18। अर्थशास्त्र
(कौटिल्य) भाग एक। नवमधिकरण - अभियास्यत्कर्म पञ्चत्रिंशच्छततमं प्रकरणम्। 3. चक्रवर्तिचिह्नानि तु - "चक्रं रथो मणिर्भार्या निधिरश्वो गजस्तथा। प्रोक्तानि सप्त रत्नानि सर्वेषां चक्रवर्तिनाम्।"
(काव्यमीमांसा - सप्तदश अध्याय) 4. अत्र च कुमारीद्वीपे - "विन्ध्यश्च पारियात्रश्च शक्तिमानृक्षपर्वत:महेन्द्रसह्यमलयाः सप्तैते कुलपर्वताः॥"
(काव्यमीमांसा - सप्तदश अध्याय)