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________________ [244] आचार्य राजशेखर ने 'काव्यमीमांसा' में उशना तथा बाल्मीकि की कविसंज्ञा निर्धारण की काल्पनिक कथा प्रस्तुत की है। 1 सरस्वती द्वारा छोड़ा गया सरस्वतीपुत्र जब उशना द्वारा अपने आश्रम में ले जाया गया तब उसने आश्रम के वातावरण से आश्वस्त होकर मुनि के हृदय में छन्दोबद्ध वाणी की प्रेरणा की। मुनि उशना अकस्मात् बोल उठे 'या दुग्धाऽपि न दुग्धेव कविदोग्धृभिरन्वहम् । हृदि न सन्निधतां सा सूक्तिधेनुः सरस्वती । तभी से संसार में उशना ऋषि कवि नाम से प्रसिद्ध हो गए और उन्हीं के कारण सभी छन्दोबद्ध रचना करने वाले कवि कहलाने लगे। काव्यमय होने के कारण सरस्वती के उस पुत्र को भी लाक्षणिक रूप से काव्यपुरुष कहा जाने लगा स्नान से लौटी सरस्वती को महामुनि बाल्मीकि ने महामुनि उशना के आश्रम का मार्ग बताया। प्रसन्न सरस्वती ने उन्हें भी छन्दोबद्ध रचना के लिए वरदान दिया। वे क्रौञ्चमिथुन के शोक से विह्वल होकर श्लोकमय वाणी में बोले 'मा निषाद प्रतिष्ठां त्वमगमः शाश्वती समाः यत्क्रौञ्चमिथुनादेकमवधीः काममोहितम्।' सरस्वती ने बाल्मीकि के मुख से निःसृत श्लोक को प्रथमतः पढ़ने वाले को सारस्वत कवि बनने का वरदान दिया।3 यह सभी स्वीकार करते हैं कि काव्यजगत् के विकासक्रम में समयान्तर से कवि की परिभाषा 'वर्णयिता' में परिवर्तन हुआ। केवल वर्णन नहीं, बल्कि चमत्कृतिपूर्ण वर्णन कवि की श्रेष्ठता की कसौटी बना। आचार्य राजशेखर ने अपनी मौलिक उद्भावनाओं के रूप में दो प्रकार की प्रतिभाओं 1 2 3 (काव्यमीमांसा तृतीय अध्याय) - - .......... ततः प्रभृति तमुशनसं सन्तः कविरित्याचक्षते । तदुपचाराच्च कवयः कवय इति लोकयात्रा . काव्यैकरूपत्वाच्च सारस्वतेयेऽपि काव्यपुरुष इति भक्त्या प्रयुञ्जते। (काव्यमीमांसा तृतीय अध्याय) ततो दिव्यदृष्टिदेवी तस्मा अपि श्लोकाय वरमदात् यदुतान्यदनधीयानो यः प्रथममेनमध्येष्यते स सारस्वतः कविः सम्पत्स्यत इति । (काव्यमीमांसा - तृतीय अध्याय)
SR No.010645
Book TitleAcharya Rajshekhar krut Kavyamimansa ka Aalochanatmaka Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKiran Srivastav
PublisherIlahabad University
Publication Year1998
Total Pages339
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size28 MB
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