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________________ [12] तीसरी नाट्यकृति 'विद्धशालभञ्जिका' कलचुरी नरेश युवराजदेव 'केयूरवर्ष' की सभा के आदेश से प्रस्तुत की गई थी। आचार्य राजशेखर के तीनों आश्रयदाताओं के कार्यकाल के आधार पर आचार्य राजशेखर का समय 880 ई० से 950 ई० तक सिद्ध किया जा सकता है। महेन्द्रपाल का समय 890 ई० से 910 ई० महीपाल का समय - 910 ई० से 948 ई० युवराजदेव प्रथम का समय - 910 ई० से 948 ई० आचार्य राजशेखर द्वारा पूर्ववर्ती आचायों का उल्लेख : आचार्य राजशेखर ने काश्मीर के उद्भट, वामन, आनन्दवर्धन, रत्नाकर तथा कन्नौज के वाक्पतिराज तथा भवभूति के सिद्धान्तों तथा उक्तियों को उद्धृत किया है ।2 आचार्य रुद्रट का भी काव्यमीमांसा में उल्लेख है 3 उद्भट काश्मीर के राजा जयापीड की सभा के सभापति थे। जयापीड का समय-विक्रमाब्द 836-870, ई० सन् 779-813 है। आचार्य वामन भी इसी काल के थे। ध्वन्यालोककार आनन्दवर्धन तथा रत्नाकर समकालीन थे तथा काश्मीर के राजा अवन्तिवर्मा 1. "तन्मन्ये तदभिनये श्रीयुवराजदेवस्य परिषदाज्ञा" (विद्धशालभञ्जिका, प्रथम अङ्क) "सुप्रभातं देवस्य केयूरवर्षस्य" (विद्धशालभञ्जिका, चतुर्थ अङ्क) 2 उद्भट का उल्लेख :- "अस्तु नाम नि: सीमार्थसार्थः। किन्तु द्विरूप एवासौ विचारित सुस्थोऽविचारितरमणीयः। तयोः पूर्वमाश्रितानि शास्त्राणि तदुत्तरं काव्यानि।" इत्यौद्भटाः। काव्यमीमासा - (नवम अध्याय) वामन का उल्लेख :- "आग्रहपरिग्रहादपि पदस्थैर्यपर्यवसायस्तस्मात्पदानां परिवृत्तिवैमुख्यं पाकः" इति वामनीयाः । (पृष्ठ - 50) काव्यमीमांसा - (पञ्चम अध्याय) आनन्दवर्धन का उल्लेख :- "प्रतिभाव्युत्पत्त्योः प्रतिभा श्रेयसी" इत्यानन्दः। (पृष्ठ - 38) काव्यमीमांसा - (पञ्चम अध्याय) वाक्पतिराज का उल्लेख :- 'न' इति वाक्पतिराजः। "आसंसारमुदारैः कविभिः प्रतिदिनगृहीतसारोऽपि। अद्याऽप्यभिन्नमुद्रो विभाति वाचां परिस्पन्दः।" काव्यमीमांसा - (द्वादश अध्याय) (पृष्ठ - 154) 3 'काकुवक्रोक्तिर्नाम शब्दालङ्कारोऽयम्' इति रूद्रटः। काव्यमीमांसा - (सप्तम अध्याय) (पृष्ठ - 78)
SR No.010645
Book TitleAcharya Rajshekhar krut Kavyamimansa ka Aalochanatmaka Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKiran Srivastav
PublisherIlahabad University
Publication Year1998
Total Pages339
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size28 MB
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