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________________ [171] परिभ्रमण करके जिन अर्थों को प्राप्त कर प्रणीत किया उनका ही देश, काल से अन्यथात्व हो जाने पर भी उसी रूप में प्रस्तुतीकरण होता रहा।'' इस विषय में भ्रम उत्पन्न करता है। कवियों की कल्पनाओं के सत्य रूप के अन्वेषण की आवश्यकता भी नहीं है। कवियों की कल्पना का आधार कोई न कोई सत्य अवश्य होता है, किन्तु कल्पनाएँ ही सत्य हों तो वे कविकल्पना कहाँ है? तब तो वे तथ्य तथा यथार्थ के निकट हैं जो कल्पना जगत् से परे है। कविसमय सम्बद्ध असत्य कल्पनाओं को किसी विशिष्ट भावना से प्रेरित होकर ही कवियों ने प्रस्तुत किया होगा केवल यही माना जा सकता है। सत्य से विपरीत दिखने वाला कविसमयों का रूप केवल कल्पना ही नहीं है, वह विद्वानों को कभी उपलब्ध भी हुआ था, तथा शास्त्र और लोक से अपने मूल रूप में भिन्न भी नहीं था, यह केवल राजशेखर की ही मान्यता है, जो अलौकिक सुन्दर कल्पनाओं के रूप को कभी लौकिक, तथा शास्त्रीय बताकर उनके उस लौकिक, शास्त्रीय मूलाधार के अन्वेषण हेतु प्रेरित करती है, साथ ही भ्रमित भी करती है। कविसमयों के आज के अशास्त्रीय, अलौकिक रूप कभी लौकिक और शास्त्रीय थे इसका प्रमाण प्राप्त कर सकना कठिन है। इसके अतिरिक्त काव्य को विज्ञान की कसौटी पर कसने का कोई तात्पर्य नहीं है। काव्य कवियों की अलौकिक कल्पनाओं पर सदा ही आधारित रहा है। सभी अलौकिक कल्पनाओं में लोक के असुन्दर से ऊपर उठकर सुन्दर को प्रस्तुत करने की ही भावना निहित है। उसका रूप लौकिक भी था इसका प्रमाण प्रस्तुत करने की आवश्यकता ही क्या है? विभिन्न वर्णों एवं वस्तुओं का परस्पर ऐक्य : उपरोक्त कविसमयों के अतिरिक्त कवि विभिन्न वर्गों एवं वस्तुओं का वर्णन की दृष्टि से परस्पर ऐक्य स्वीकार करते हैं। उन्होंने काव्य जगत् में कृष्ण और हरित को, कृष्ण और नील को, कृष्ण और श्याम को, पीत और रक्त को, शक्ल और गौर को एक समान माना है। कवि काव्यों में क्षीर और क्षार 1. पूर्वे हि विद्वांसः सहस्रशाखं साङ्गं च वेदमवगाह्य, शास्त्राणि चावबुध्य, देशान्तराणि द्वीपान्तराणि च परिभ्रम्य, यानर्थानुपलभ्य प्रणीतवन्तस्तेषाम् देशकालान्तरवशेन अन्यथात्वेऽपि तथात्वेनोपनिबन्धो यः सः कविसमयः। काव्यमीमांसा - (चतुर्दश अध्याय)
SR No.010645
Book TitleAcharya Rajshekhar krut Kavyamimansa ka Aalochanatmaka Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKiran Srivastav
PublisherIlahabad University
Publication Year1998
Total Pages339
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size28 MB
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