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भारवि के किरातार्जुनीयम् में कविसमय के विरुद्ध वर्षा में भी कोकिल के मधुर स्वर का वर्णन मिलता है। (10-22)1 इस श्लोक से प्रकट होता है कि प्रसन्न होने पर ही कोकिल के स्वर में अधिक माधुर्य होता है। यहाँ पके जम्बू फल के उपयोग से कोकिल अधिक प्रसन्न है। इस श्लोक की मल्लिनाथ टीका में वर्पास्वपि मधुरा:स्वरा:कोकिलायाः इति प्रसिद्धिः' कथन है।
प्रिय सहकारमन्जरी के कारण ही कोकिल का प्रसन्न स्वर होता है इस विषय को भारवि के
'किरातार्जुनीयम्' का श्लोक (5-26)2 सिद्ध करता है, क्योंकि सहकार मन्जरी के समान गन्धयुक्त
हाथियों के मदजल की सुगन्ध के कारण कोकिल अकाल (बसन्त के अतिरिक्त समय) में मदयुक्त है।
बसन्त में आम्रमन्जरी की सूचना सर्वप्रथम कोकिल के शब्दों से ही प्राप्त होती है। (4-14कुमारसंभव) सामान्यतः बसन्त में कोकिल के स्वर के साथ सहकार मञ्जरी का वर्णन कवि अवश्य
करते हैं।
मयूर के नृत्य तथा शब्द का केवल वर्षा में वर्णन :
मयूर का नृत्य तथा शब्द वर्षा के अतिरिक्त अन्य ऋतुओं में भी होता है, किन्तु कवि काव्यजगत् की परम्परा के अनुसार उसका केवल वर्षा में ही वर्णन करते हैं। बादलों को देखकर मयूरों का प्रसन्नता से नृत्य करने तथा मादक स्वर मुखरित करने का कारण वर्षा ऋतु का मयूरों का गर्भाधान काल होना है। इस ऋतु में मयूरों की प्रसन्नता उनके नृत्य को जितना सुन्दर, हृदयग्राही तथा स्वर को जितना मादक बना देती है, उतना अन्य ऋतुओं में नहीं।
1. व्यथितमपि भृशं मनो हरन्ती परिणतजम्बूफलोपभोगहृष्टा। परभृतयुवतिः स्वनं वितेने नवनवयोजितकण्ठरागरम्यम् (10-22)
किरातार्जुनीयम् (भारवि) 2 सादृश्यं गतमपनिद्रचूतगन्धैरामोदं मदजलसेकजम् दधानः।
एतस्मिन्मदयति कोकिलानकाले लीनालिः सुरकरिणां कपोलकाष : (5-26) किरातार्जुनीयम् (भारवि) 3. हरितारुणचारुबन्धन: कलपुंस्कोकिलशब्दसूचितः वद संप्रति कस्य बाणतां नवचूतप्रसवो गमिष्यति (4-14)
कुमारसंभवम् (कालिदास)