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________________ [138] आवश्यकता प्रतिभा सम्पन्न कवि को उस मात्रा में नहीं होती जितने विस्तृत रूप में वे काव्यमीमांसा में वर्णित हैं। नैसर्गिक गुण रूप कवित्वशक्ति का सभी में अस्तित्व सम्भव न होना अनिवार्य मान्यता है । इसी मान्यता पर आचार्य राजशेखर की दृष्टि भी अधिक थी। ऐसी स्थिति में सामान्य लोगों की कवि बनने की इच्छा अभ्यास आदि के द्वारा काव्यप्रतिभासम्पन्न होकर ही पूर्ण हो सकती थी। राजशेखर के सामने सम्भवतः अभ्यासपूर्वक कवि बनने वाले अधिक रहे होंगे। इसी कारण आचार्य राजशेखर की काव्यमीमांसा कवि बनने के इच्छुक सामान्य लोगों के लिए अधिक है, जन्मजात कवियों के लिए कम। अभ्यास से सम्बद्ध विभिन्न विषयों जैसे कवि की क्रमिक विकास की अवस्थाओं एवं गुरूकुल में रहकर शिक्षा प्राप्त करने की स्थिति को राजशेखर के अतिरिक्त अन्य आचार्यों ने अपने ग्रन्थ विवेचन में स्थान नहीं दिया, क्योंकि काव्य के क्रमिक मनोहारी रूप की प्राप्ति के लिए अभ्यास को अनिवार्य मानकर भी उन्होंने उसे प्रतिभा के समकक्ष ही अनिवार्यता नहीं दी, किन्तु आचार्य राजशेखर अपने शाब्दिक रूप में शक्ति एवम् प्रतिभा को प्रथम स्थान देकर भी सम्भवत: अभ्यास को अत्यधिक महत्व देते रहे। इस बात को उनके ग्रन्थ में विस्तार प्राप्त अभ्यास विवेचन ही सूचित करता है। आचार्य राजशेखर ने कवि के जीवन में स्वास्थ्य, स्वच्छता एवम् सात्त्विक स्वभाव को महत्व दिया है। किन्तु इन विषयों का महत्व तो किसी भी साहित्यकार अथवा रचनाकार के लिए हो सकता है। राजशेखर का ग्रन्थ भाषा एवं विषय की दृष्टि से अपनी ज्ञानसीमा के अन्तर्गत ही कवि की स्थिति लोकरूचि एवं आत्मरुचि का ध्यान, कवि के लिए पक्षपात एवम् अभिमान से रहित होने की आवश्यकता आदि सामान्य विषयों का कवि को निर्देश कवि शिक्षा एवं अभ्यास से ही अधिक सम्बद्ध होने के कारण देता है। राजशेखर के ग्रन्थ में अभ्यास से सम्बद्ध अत्यधिक सामान्य स्थूल विषय विवेचन के लिए ग्रहण किए गए हैं। किन्तु अभ्यास से सम्बद्ध इस प्रकार के विषयों का ऐसा अत्यधिक सामान्य रूप अन्य आचार्यों के ग्रन्थों में नहीं मिलता। जन्मजात कवि को नहीं, किन्तु सामान्य व्यक्ति को ही कवि बनाना राजशेखर के ग्रन्थ का उद्देश्य है। यह ग्रन्थ राजशेखर द्वारा विवेचित द्वितीय प्रकार के शिष्य आहार्यबुद्धि से ही अधिक सम्बद्ध है जो इस जन्म के अभ्यास के परिणामस्वरूप काव्यप्रतिभा
SR No.010645
Book TitleAcharya Rajshekhar krut Kavyamimansa ka Aalochanatmaka Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKiran Srivastav
PublisherIlahabad University
Publication Year1998
Total Pages339
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size28 MB
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