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मानसिक एकाग्रता सम्भव है न ही विषयों से चित्त की निवत्ति । इसी कारण उसके काव्य निर्माण के
कुछ निश्चित समय ही हो सकते हैं । आचार्य राजशेखर ने इस प्रकार के कवि के लिए कुछ निश्चित
समय निर्धारित किए हैं - जैसे रात्रि के चतुर्थ प्रहर का अर्धभाग अर्थात् पूर्णविश्रामदायिनी निद्रा के अनन्तर श्रमनिवृत्ति के कारण कवि को पूर्ण मानसिक एकाग्रता प्रदान करने वाला सारस्वत मुहूर्त । इच्छाओं की तृप्ति के अनन्तर मन की एकाग्रता सम्भव होने से भोजन तथा रमण के बाद का समय । आचार्य राजशेखर ने लम्बी वाहन यात्रा को भी कवि की काव्य रचना के उपयुक्त समय के रूप में स्वीकार किया है। अन्य कार्यो में भी संलग्न कवि की वाहन यात्रा के समय अपने कार्यों से विश्राम प्राप्त होने के कारण काव्य निर्माण में प्रवृत्ति सम्भव है। किन्तु लम्बी वाहन यात्रा का काव्यनिर्माण के लिए उपयुक्त समय होना उसी समय की मान्यता हो सकती है, जब आजकल के से जनसंकुल वाहन न रहे हों। आचार्य राजशेखर ने निश्चय ही अपने समसामयिक वातावरण के आधार पर यह उल्लेख किया होगा - तत्कालीन वाहनों का एकान्त कवियों की यात्रा के समय भी उन्हें मन की एकाग्रता के लिए उपयुक्त स्थान प्रदान करता रहा होगा । 'दत्तावसर' कवि के लिए काव्यनिर्माण के इन निर्धारित समयों में मन एकाग्र हो सकता है किन्तु साथ ही मन की एकाग्रता के अत्यधिक प्रयत्न का ही परिणाम होने के कारण उन कालों में भी काव्य रचना की तीव्र इच्छा तथा रूचि ही कवि को मानसिक एकाग्रता प्रदान कर
सकती है।
'प्रायोजनिक' कवि में काव्यनिर्माण की सामर्थ्य यद्यपि प्रत्येक काल में विद्यमान होती है किन्तु काव्य रचना में सम्भवतः विशिष्ट रूचि के अभाव के कारण वे सर्वदा काव्यनिर्माण में प्रवृत्त नहीं होते। उन्हें कुछ विशिष्ट अवसर जैसे कोई माङ्गलिक अथवा शोक का अवसर अथवा इसी प्रकार का अन्य
कोई प्रेरक अवसर ही काव्य निर्माण की प्रेरणा प्रदान करते हैं ।
1. यरत प्रस्तुत किंचन संविधानकमुद्दिश्य कयते, स प्रायोजनिकस्तस्य प्रयोजनवशात् कालव्यवस्था ।
(काव्य भीमांसा - दशम अध्याय)