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________________ [115] परिपक्वावस्था में कवियों के काव्य में सरसता स्वयं ही आती होगी-प्रयत्नपूर्वक उसका निर्वाह कवि को नहीं करना पड़ता होगा। आचार्य राजशेखर द्वारा प्रस्तुत काव्यनिर्माण के नौ रूपों में से पूर्णत: उपादेयता केवल तीन रूपों की है-जिन्हें आचार्य राजशेखर ने मृढीका पाक, सहकार पाक तथा नारिकेल पाक के नाम से अभिहित किया है। जो रचना आदि में नीरस होकर भी अन्त में सरस हो उसे मृद्वीका पाक कहा गया है। आदि में कुछ मध्यम तथा अन्त में स्वादु रचना सहकार पाक तथा आदि से अन्त तक मधुर रचना नारिकेल पाक है। इस प्रकार की रचनाएँ कवि निश्चिन्त होकर कर सकते हैं क्योंकि इनमें अन्त में सरसता का निर्वाह इन्हें पूर्णत: ग्राह्य बना देता है। आदि में किसी भी प्रकार के स्वरूप वाली वे रचनाएं जिनका स्वरूप अन्त में मध्यम मधुर हो ग्रहण की जा सकती हैं। परन्तु उनका किश्चित् संस्कार ही उन्हें ग्राह्य बना सकता है। अन्त में किश्चित् सरस रचना का संस्कार उसे अन्त में पूर्णतः सरस बनाने से ही सम्बद्ध हो सकता है क्योंकि आचार्य राजशेखर अन्त में सरस रचना को ही पूर्णत: ग्राह्य मानते हैं। काव्यनिर्माण के अन्त में मध्यम मधुर जिन तीन रूपों को आचार्य राजशेखर ने स्वीकार किया है वे हैं-बदरपाक, तिन्तिडीक पाक तथा त्रपुसपाक। इनमें से बदरपाक वह रचना है जो आदि में नीरस तथा अन्त में कुछ सरस हो, तिन्तिडीक पाक आदि और अन्त दोनों में मध्यम स्वाद वाली रचना है तथा त्रपुसपाक आदि में स्वादु तथा अन्त में मध्यम स्वादु रचना को कहा गया है-। इन रचनाओं की अन्त में स्थित किञ्चित् सरसता को कवि को अभ्यासपूर्वक पूर्णत: सरस बनाने का प्रयास करना चाहिए। आदावस्वादु परिणामे स्वादु मृद्वीकापाकम् । आदौ मध्यममन्ते स्वादु सहकारपाकम् आद्यन्तयोः स्वाद् नालिकेरपाकमिति। स्वभावशुद्धं हि न संस्कारमपेक्षते। न मुक्तामणे: शास्तारतायै प्रभवति। (काव्यमीमांसा - पञ्चम अध्याय) आदावस्वादु परिणामे मध्यमं बदरपाकम् आद्यन्तयोर्मध्यमं तिन्तिडीकपाकम् आदावुत्तममन्ते मध्यमं त्रपुसपाकम्। ............... मध्यमा संस्कार्याः। संस्कारी हि सर्वस्य गुणमुत्कर्षति । द्वादशवर्णमपि सुवर्ण पावकपाकेन हेमीभवति । (काव्यमीमांसा - पञ्चम अध्याय)
SR No.010645
Book TitleAcharya Rajshekhar krut Kavyamimansa ka Aalochanatmaka Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKiran Srivastav
PublisherIlahabad University
Publication Year1998
Total Pages339
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size28 MB
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