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आचार्य राजशेखर का व्यक्तित्व एवम् कृतित्व
आचार्य राजशेखर का काल (अन्तः साक्ष्यों तथा बहिःसाक्ष्यों का आधार)
यद्यपि आचार्य राजशेखर के काल निर्णय के सम्बन्ध में अनेक मत उपलब्ध हैं जो उन्हें सातवीं, आठवीं, ग्यारहवीं, बारहवीं तथा चौदहवीं शताब्दी का सिद्ध करते हैं, किन्तु अन्ततः उनको नवीं शताब्दी का सिद्ध करने वाले विभिन्न प्रामाणिक अन्तः साक्ष्यों तथा बहि:साक्ष्यों की उपलब्धता के कारण
आचार्य राजशेखर का कालनिर्णय कठिन नहीं रहता। उनके काल निर्णय से सम्बद्ध विभिन्न
इतिहासकारों के मतों का संक्षिप्त प्रस्तुतीकरण आवश्यक है
श्री बरो का सातवीं शताब्दी का मत :
श्री बरो अपनी पुस्तक 'Bhavbhuti and his place in Sanskrit literature Page - 17' में
भवभूति को सातवीं शताब्दी का मानकर उनके कुछ समय पश्चात् आविर्भूत राजशेखर को भी सातवीं शताब्दी का मानते हैं । इस संदर्भ में उन्होंने आचार्य राजशेखर के ग्रन्थों (बालरामायण तथा बालभारत)
का श्लोक उदघत किया है। श्री कोनो तथा प्रो० लैनमैन ने भी अपनी पुस्तक में श्री बरो के मत का
उल्लेख किया है।
1. बभूव बल्मीकभवः कविः पुरा
ततः प्रपेदे भुवि भर्तृमेण्ठताम्। स्थितः पुनर्योभवभूतिरेखया। म वर्तते सम्प्रति राजशेखरः। बालरामायण (1-16) बाल भारत (1-12)
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"Anundoram Barooah is of opinion that the tradition according to which Rajshekhar is said to have been a contemporary of Canikara should be trusted and that accordingly "we can safely fix the seventh century as his probable date." 'Rajshekhar's Karpurmanjari'
Page - 177 S. Konow, C.R. Lanman