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________________ हृदयकवि और अन्यापदेशी यह दोनों अवस्थाएँ कवि द्वारा काव्यरचना के लिए किए गये केवल प्रारम्भिक प्रयास ही हैं- इन दोनों अवस्थाओं में कवि में काव्यरचना की क्षमता न होने के ही बराबर है। यद्यपि हृदय कवि में आत्मविश्वास नाममात्र भी नहीं है। किन्तु अन्यापदेशी में विश्वास अङ्कुरित होने लगता है। [100] सेविता:- काव्यविद्याओं के ज्ञान तथा अभ्यास आदि के द्वारा काव्यरचना में किञ्चित् समर्थ होना कवि की 'सेविता' अवस्था में सम्भव है। इस अवस्था में काव्यरचना की क्षमता अल्पांश में प्राप्त प्राप्त कर लेने पर भी कवि आत्मनिर्भर होकर काव्यरचना नहीं कर सकता बल्कि किसी पुरातन कवि की छाया पर ही काव्यनिर्माण करता है। दूसरे शब्दों में इस अवस्था में कवि काव्य की शब्दरचना प्राप्त सामर्थ्य कर लेता है परन्तु भावस्वातन्त्र्य उसे नहीं प्राप्त होता यह अवस्था पूर्ण कवि की नहीं है क्योंकि कवि को स्वतः काव्यरचना करने की समर्थता अभी उपलब्ध नहीं है। दूसरों पर आश्रित होना 'सेविता' नामकरण का आधार है प्रारम्भिक अवस्था के हरणकर्ता कवि इसी कोटि के हैं। - घटमान :- यह अवस्था कवि की प्रारम्भिक चार अवस्थाओं की अपेक्षा कवि के कुछ अधिक विकास की अवस्था है- क्योंकि इस अवस्था में कवि स्वतः ही काव्यरचना करने में समर्थ होता हैकिन्तु यहाँ भी कवि का पूर्ण विकास नहीं है क्योंकि कवि किसी प्रबन्ध का निर्माण करने में समर्थ न होकर केवल प्रकीर्ण विषयों पर ही स्वतन्त्र रूप से काव्यरचना कर सकता है। 2 घटयति चेष्टते- यह व्युत्पत्ति घटमान नाम को स्पष्ट करती है । 1. 2 यः प्रवृत्तवचन: पौरस्त्यानामन्यतमच्छायामभ्यस्यति स सेविता । । sai कवते न तु प्रबध्नाति स घटमानः । (काव्यमीमांसा - पञ्चम अध्याय) (काव्यमीमांसा-पञ्चम अध्याय)
SR No.010645
Book TitleAcharya Rajshekhar krut Kavyamimansa ka Aalochanatmaka Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKiran Srivastav
PublisherIlahabad University
Publication Year1998
Total Pages339
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size28 MB
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