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________________ २१६ | मुक्ति का अमर राही : जम्बूकुमार प्रवचन से प्रेरित होकर और उनके उपदेशो को हृदयगम कर सभी ज्ञानार्जन एव तपश्चर्या के मार्ग पर पूर्ण धैर्य एव साहस के साथ चरण बढाने लगे। दीक्षोपरान्त उपलब्धियाँ जम्बूकुमार से जम्बू मुनि होकर वे अत्यन्त धीर-गम्भीर रूप मे आत्म-कल्याण के पवित्र पथ पर अग्रसर होते रहे । सयम और साधना उनके पाथेय थे। सच ही है, जब मनुष्य की आत्मा पर से अज्ञानावरण हट जाता है, तव उसकी चेतना अर्ध्वमुखी हो जाती है और आत्मा उत्थान के नव-नवीन आयामो के अनुसन्धान मे मतत रूप से व्यस्त रहती है । जम्बू मुनि अहर्निश आचार्य सुधर्मा स्वामी की सेवा में लगे रहते और उनके विद्वत्तापूर्ण मार्गदर्शन मे ज्ञानार्जन करते रहे। साधना के क्रम में भी उन्होंने अमाधारण प्रगति की । द्वादशागी का सम्पूर्णत अध्ययन उन्होने अल्पावधि मे ही सम्पन्न कर लिया और उसके सूक्ष्माशो को भी उन्होने गम्भीरता के साथ हृदयगम कर लिया था । दीक्षा के पूर्व १६ वर्ष जम्बूकुमार ने गृहस्थ जीवन मे व्यतीत किये थे और दोक्षोपरान्त २० वर्प की सुदीर्घ अवधि उन्होने अथक गुरु-मेवा, गम्भीर अध्ययन-मनन एव साधना में प्रयुक्त की। वीर निवाण सवत् २० की समाप्ति का समय था, जब आर्य सुधर्मा स्वामी ने अपने निर्वाण की वेला मे जम्बू मुनि को अपना उत्तराधिकारी घोपित किया था। आर्यश्री ने उनको भगवान महावीर स्वामी के द्वितीय पट्टधर के रूप में नियुक्त किया। आचार्य पद की प्राप्ति के पश्चात वे आर्य जम्बू स्वामी हो गये ।
SR No.010644
Book TitleMukti ka Amar Rahi Jambukumar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajendramuni, Lakshman Bhatnagar
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year1977
Total Pages245
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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