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________________ १७२ | मुक्ति का अमर राही : जम्बूकुमार पावे' वाली दशा को आप क्यो प्राप्त करना चाहते है । कुमार । अव भी समय है, सचेत हो जाइये और अपने सुखमय जीवन को यो नष्ट मत कीजिए। एक कथा मे इसका सुन्दरता के साथ चित्रण मिलता है कि किस प्रकार एक बाज पक्षी को अपने दुस्साहस का दुष्परिणाम भोगना पडा। आज हे स्वामी । मैं आपको उस वाज की कथा सुनाती हूँ। किसी वन मे एक बाज पक्षी निवास करता था । वह वन अत्यन्त सधन था और अनेक छोटे-बडे पशु-पक्षी इसमे रहा करते थे । अत. वाज की उदरपूर्ति यहाँ विना किसी विशेष प्रयत्न के ही हो जाया करती थी। वह सुख-चैन से जीवन-यापन कर रहा था । अपना भक्ष्य यहां उसे यद्यपि सुगमता से सुलभ हो जाता था, तथापि उदरपूर्ति के लिए कुछ प्रयत्न तो करना ही पड़ता है। और यह बाज वडा आलसी था। उसे तो बिना परिश्रम के ही खाद्य प्राप्त कर लेने की इच्छा बनी रहती थी। वाज की यह कामना भी एक दिन पूरी हो गयी । सयोग मे एक दिन धूप की तेजी से त्रस्त होकर शीतलता की खोज मे वह एक कन्दरा मे घुस गया। वहां पहुंचकर वह विश्राम करने ही लगा था कि एक सिंह पर उसकी दृष्टि पडी, जो भूमि पर पडा • गहरी निद्रा का आनन्द ले रहा था। सिंह ने अपना मुख खोल रखा था जिसमे वडे-बडे पैने दाँत चमक रहे थे। अब से पूर्व वह शेर के दांत नही देख पाया था अत समीप के एक शिला खण्ड पर बैठ कर वह सिंह के दांतो को ध्यान से देखने लगा। तभी उसने देखा कि सिंह के दांतो मे मांस के बडे-बडे टुकडे उलझे हुए
SR No.010644
Book TitleMukti ka Amar Rahi Jambukumar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajendramuni, Lakshman Bhatnagar
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year1977
Total Pages245
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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