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१५२ | मुक्ति का अमर राही : जम्बूकुमार
के मार्ग पर अग्रसर हो सकेगा। इन भौतिक और दुखजनक सुखो को प्राप्त करना कुमार्गगामी होना है और निर्वाण की साधना को निश्चित रूप से सुमार्ग कहा जा सकता है । कुमार्ग पर गतिशील रहने के परिणाम भी अशुभ होगे और सुमार्गानुसरण से सुफल की प्राप्ति होती है।
नभसेना | जिस पर मैं गतिशील हूँ वह सन्मार्ग है और तुम मुझे कुमार्गी होने के लिए प्रेरित करना चाहती हो। इस सन्दर्भ में मैं यह भी स्पष्ट करना चाहता है कि केवल सन्मार्ग की ओर उन्मुख हो जाना, अथवा उस पर अग्रसर होने लगना ही पर्याप्त नही है । इस मार्ग के प्रति साधक के मन मे ऐसी दृढ आस्था का भाव होना चाहिए कि प्रबलतम प्रलोभन अथवा भय भी उसे विचलित नही कर पाये। किसी भी परिस्थिति में वह अपने निश्चय से टलकर सांसारिकता की ओर न मुडे-तभी उसे सफलता प्राप्त हो सकती है । मैंने इस मर्म को भली-भांति चित्तस्थ कर लिया है। अतः तुम्हारा प्रयास विफल ही जायगा । मैं सासारिक विषयो को अपना साध्य स्वीकार नही कर सकता।
कुछ क्षण मौन रहकर कुमार ने पुनः नभसेना को सम्बोधित किया और कहा कि तुमने कदाचित् विनीत-अविनीत अश्वो की कथा नही सुनी है-इसीलिए तुमने यह प्रयत्न किया है। सुनो, मैं तुम्हे वह कथा सुनाता हूँ।
किसी राज्य के स्वामी को हाथी, घोडे, ऊंट आदि पालने में गहन रुचि थी। उमकी अश्वशाला मे कई स्वस्थ, स्फूतिशील