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१० : विनीत-अविनीत अश्वों की कथा :
. नभसेना का भ्रम-निवारण
नभसेना ने युक्तिपूर्वक प्रयत्न किया था, किन्तु उसे अपने प्रयोजन मे सफलता नहीं मिल पाई। वह भी जम्बूकुमार को टस से मस नही कर सकी । वे अपने विचारो पर पूर्ववत् ही दृढ बने रहे । कुमार को अनुभव हुआ कि नभसेना एक भ्रान्ति से-ग्रस्त है और इसी कारण सिद्धि और बुद्धि की कथा के माध्यम से मुझे इन असार सुखो मे लिप्त रहने की प्रेरणा दे रही है । उसकी इस भ्रान्ति को दूर करने के प्रयोजन से वे उसकी ओर उन्मुख हुए और बोले कि नभसेना | तनिक व्यापक बुद्धि से सोचने का प्रयत्न करोगी तो तुम्हे सहज ही यह ज्ञात हो जायगा कि जिन सुखो की तुम चर्चा कर रही हो, वे वास्तव मे सुख हैं ही नहीं । वे तो दु खो के ही मात्र आकर्षक रूप हैं । मुझे इनकी चाहना ही नही। मैं तो आत्म-कल्याण के अनुपम और चिर-सुख का अभिलाषी हूँ। अत तुम्हारा यह कथन सर्वथा मिथ्या है कि मुझमे प्राप्त सुखो के प्रति असन्तोष का भाव है और इसलिए मैं अधिकाधिक प्राप्ति के लिए व्यग्र हूँ। फिर भला मुझे सिद्धि की भाँति क्यो पछताना पडेगा ? क्या ग्राह्य है और क्या त्याज्यइसका विवेक मनुष्य के लिए आवश्यक है। तभी वह सारहीन और मिथ्या जागतिक सुखो को त्यांग पायेगा और आत्म-कल्याण