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[कवि जान कृत . राज कीयौ है । दिल्लीमैं, मानिकदे चहुवांन । दोइ बरस षट मास लौं, सतरह दिन कहि जान ॥५॥ पाचं दिल्लीमैं भयो, देवराज चहुवांन । तीन मास द्वै बरस लौं, सत्रह दिन कहि जान ।।५।। पाछै दिल्लीमें भयौ, रावलदे चहुवांन । सात द्योस नौ बरस लौ, राज कीयौ कहि जांन ।।६०॥ पाछै दिल्लीमै भयौ, देवसीह चहुवांन । तीन मास षट बरस लौं, राज कीयौ कहि जान ॥६१॥ येक मास बाईस दिन, दस बरसनि स्योंदेव । राज कीयौ है दिल्लीमें, सब मिलि कीनी सेव ॥६२।। वा पाछै बलदेव है, राखन कुलकी लाज । पंच वरस दिन एक दस, करयौ दिलीमै राज ॥६३।। प्रिथीराज पाछै भयौ, दिल्लिपति चहुवांन । ग्यारह दिन दुने बरस, रही जगतमै ांन ॥६४।। दूब काबिली दिल्लीमें, लई मंगाइ मंगाइ । घरी घरी आवत हरी, चरी तुरंगनि खाइ ॥६५॥ प्रिथीराजकी बरनना, मोपै करी न जाइ । साके गनना हि न सकौ, कहा कही समझाइ ॥६६॥ और बंस चहुवांनकै, राजा भये अपार । बीसल आना जान कहि, हठी हमीर मुछार ॥६७॥ जिती जात रजपूतकी, सगरे हिदसतान । सबमें निहचै जानियो, बड़ी गोत चहुवांन ॥६॥ चाहुवांन सुत मुनि अरु, मुनि मानिक जैपाल । येक भयो जोगी अमर, तीन भये भोवाल ॥६९।। मानिक कुल प्रिथीराज हुव, सोमेसुरको अंस । जिते राठ चहुवांन है, ते अरिमुनिक बंस ॥७०॥