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क्यामखां रासा-भूमिका यादशाह अकबर के मरने पर शाहजादा सलीम जहाँगीरको उपाधि धारण कर राजगद्दीपर बैठा। उसने दीवान अलफखांका बढा सम्मान किया और उसके नाम फतहपुरका लाल मुहरका पट्टा कर दिया। राय मनोहरने अलफखांको मेवात देशमें भेजा। वहां मेव लोग इनकी बढो सेवा करते और भेटों द्वारा द्रव्यको भी उन्हें अच्छी प्राप्ति हुई।
यीकानेरके राजा दलपतसिंहने अगणित सेना एकत्र कर वादशाहके विरुद्ध हो कर लूट-मार शुरू कर दी। वह सरसामें गया और ज्यावदीनको हटा कर उसने शाही खजाना लूट लिया। बादशाहको ज्ञात हुआ तो वह बड़ा क्रुद्ध हुश्रा और शेख कबीर व अलफखांको बीस उमरावोंके साथ विशाल सेना दे कर सरसा भेजा । दलपतसिंह वहांसे अन्यत्र चला गया। एक दिन पानीके लिए परस्पर युन्छ छिट गया। एक ओर २१ उमराव थे और दूसरी ओर अकेला अलफखां । घमासान युद्ध हुया, बहुतसे सुभटोंके मारे जाने पर स्वयं शेख कबीरने चोच-बिचाव किया। उसने दीवान अलफखांकी बढी प्रशंसा की और उन्हें सम्मानित किया। युद्ध बन्द कर दोनों दल परस्पर मिल गए और दलपतिसिंहको जीतनेके लिए भाठू पर चढ़ाई की। वह बीकानेरके बहु तसे सरदारोंके साथ था। शाही सेनाके सामने दलपतिसिंहने लडनेमे असमर्थ हो कर जलालखां द्वारा दीवान थलफखांसे कहलाया कि तुम मेरे बहे भाई हो। शाही सेनाको रोको । हमारे पूर्वज लूणकरन, प्रतापसी, जोधा, मालदेव श्रादिकी प्रीतिका प्रतिपालन करो। अलफखांने तत्काल युद्ध बंद कर प्रेमपूर्वक बादशाहके पास भेज कर दलपतिसिंहको बचा लिया । दिल्लीपतिने शेख कवीरको बुला लिया, उसके स्थान पर मुबारक श्राया।
दीवान अलफखां और पठानने मिल कर भिवानी पर चढाई को। वहां जाटू जावलोंने पैर थाम कर युद्ध किया। फिर गढ़ई में जा कर गोली चलाने लगे। दीवानके दलने तुरन्त गढ़ईको तोड़ कर जाटुओंको हरा दिया और गाँवोंको लूट कर ख्याति प्राप्त की।
बादशाहने अलफखांको मेवात देश पर चढाई करनेकी आज्ञा दी और हाथी, घोडा, सिरो. पाव देकर मनसब बढ़ाया। दीवानजो ससैन्य मेवात देशकी ओर चले । सर्व-प्रथम सारा विजय कर अलफखाने कारटेमें डेरे किये । वहां भी मेवातियोंको मार कर धनहटा गए । मेव लोगोंने खूब बीरतासे लड़ कर प्राण दिए । इस विजयसे सारे पहाड़मे अलफखांकी धाक जम गई ।
बादशाहने शाहजादे परवेजके साथ दीवान अलफखांको भी दक्षिण विजय करनेके निमित्त भेजा | बुरहानपुर पहुंचने पर युद्धके लिए सब थाने-बाँटे गये। अलफखांको मलकापुर मिला । शाहजादा एदलाबाद ठहरा और सेनाको उसने आगे भेजा। खानखांना, लोदी खानजहान, अब्दुल्ला जख्मी, कछवाहा मानसिह, राठोर रायसिंह धादिका अगणित दल इस सेनामें था । अब्दुल्लाने खूब वीरतासे लड़ाई की पर आख़िरमें उसके पैर उखड़ गए। वह बुरहानपुर लौट चला, लिखी अलफखांके मलकापुरके सिवाय सब थाने उखड़ गए । सब सरदारोंने दीवानको चिट्ठी लिखी कि सब थाने उखड़ गए, तुम क्यो बैठे हो? जैसा पंच करे वैसा करो, इसमें कौन-सी लाज है ?