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________________ २४ क्यामai रासा - भूमिका सेना लौट चली और उसने सारे गाँवोंको लूट लिया । जगमाल पँवारने कहलाया कि राणाने मुझे अजमेर दिया था; उसके सब गाँव तुम लोगोंने लूट लिए। यदि सच्चे राजपूत हो तो प्रहर दो प्रहर के लिए ठहर जाओ। मैं श्राता हूं । यह सुन कर बीकानेर, सूजा श्रमरसर, और थांबेर वाले श्रांबेर चले गए। किन्तु नाहरखाने कहा- तुम बेधड़क श्राश्रो । यह कह कर नाहरखां मकरायेके साल में प्रतीक्षा करने लगा । श्रजमेरका फ़ौजदार जगमाल पंवार राणाकी सेना लेकर आया । दोनों में परस्पर घमासान युद्ध होने लगा । श्रन्तमें पँवार भागा और चौहान नाहरखांकी जीत हुई । नाहरखांके मरने पर उसका पुत्र फदनखां फतहपुरका स्वामी हुआ उसके तीन पुत्र थे- ताजखां, पिरोजखां, दरियाखां । दिल्लीमें जब पठान सलेमसाह वादशाह हुआ तो उसने फदनखांका बड़ा सत्कार किया | मुव्वतखांका पुत्र खिदरखां फदनखांके पास खडा था । बादशाहने फदनखांको बड़ी प्रशंसा की और कहा कि सब ( क्यामखानी ) भाइयोंमें सिरमौर है । हुमायूंने भी बादशाह हो कर फदनको अच्छा श्रादर-मान दिया । दिल्लीपति कबर भी फदनखांसे प्रेम रखता था । बीरबलके पूछने पर बादशाहने कहा कि और तो सब मेरी कृपासे बने हैं, इन्हें करतारने बड़ा बनाया है । राजपूतोंकी जातिमें ३॥ कुल हैंप्रथम चौहान, द्वितीय तँवर और तीसरे पँवार, श्राधेमें शेष सब हैं । वाजित्रोंमें जैसे निसान बड़ा है वैसे ही गोत्रोंमें चौहान वढा है। फदनखांने वादशाह अकबरको अपनी बेटी दी; इससे पारस्परिक प्रेममें विशेष वृद्धि हुई । बादशाहको भोमियोंका ( हिन्दू जमींदारोंका ) विश्वास नहीं था । उसने कहा हिन्दू बदलते देर नहीं लगाते, श्रतः तुम इनकी जमानत दो तो मैं मनसब दूँ । फदनखांने सबकी जमानत दी और बादशाहने उन्हें मनसबदार कर दिया । फदनखांने राय सालको दरबारी बना कर मनसब दिलाया । ataraa लोग इधरके गाँवोंमें श्रा कर चोरी लूट कर जाते थे । यह दीवान फदनखांको बुरा लगा और उसने सेनाके साथ बोदावतों के प्रदेश में प्रवेश किया और छापर द्रौणपुर में बीदावतों को हराकर चोरीको शपथ दिला दी। इसके बाद फदनखांने छापौरी और पूख पर हमला किया; निरबानोंको हरा कर उनके गाँवोंको जला दिया । उसने वहादुरखांकी सहायता करके भुंझणू दिलाया । I फदनखांके पश्चात् उसका बडा पुत्र ताजखां' फतहपुरका स्वामी हुआ । उसके ८ पुत्र थेमहमदखां, महमूद खां, शेरखां जमालखां जलाल खां, मुजफ़्फरखां, हैबतखां और हबीबखां । ताज खां रूपमें अत्यंत सुंदर था, देश-विदेशमें उसका सौंदर्य प्रसिद्ध था । उजियारें (?) के दौलतखा पठानने प्रशंसा सुन कर दीवान ताजखांका चित्र बनवा कर मंगाया और उसे देख कर अत्यन्त प्रसन्न हुआ 1 १. राज्यकाल सं० १६०२ से १६०६ | २. राज्यकाल सं० १६०९ से १६२७ ।
SR No.010643
Book TitleKyamkhanrasa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDashrath Sharma, Agarchand Nahta, Bhanvarlal Nahta
PublisherRajasthan Puratattvanveshan Mandir
Publication Year1953
Total Pages187
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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