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रासाका ऐतिहासिक कथा - सार भरह और वैरसोके उदैराज, उसके जसराज फिर कैसोराइ और उसके पुत्र विजयराज और हरराज हुए । हरराजके केसो और नंद हुए, उसके पृथ्वीराज, फिर लालचंद, अजयचंद, गोपाल, जैतसी, पुनपाल क्रमशः हुए । जैतसीके मूलराज, असरथ, दौंका, साँगा, रातू, पातू, महियल पुत्र थे। पण्यपालके रूप, फिर रावन और उसका पुत्र तिहुँपाल हुआ । उसका पुत्र मोटेराय हुश्रा, जो ददरेवेंमें राज्य करता था। मोटेरायके पुत्र करमचंदको वादशाहने तुर्क बना कर "क्यामखां" नाम रक्खा । मोटेरायके चार पुत्रोंके नाम - क्यामखां, जैनदी, सदरदी और जगमाल थे। इनमें चौथा, जगमाल' हिंदू रहा । दीवान क्मामखांके पाँच पुत्र ताजखां, महमदखां, कुतुबखां, इख्तियारखां और मोमनखां थे।
अय क्यामखां (करमचन्द) तुर्क कैसे हुआ इसका विवरण लिखते हैं -
एक बार कुंवर करमचंद शिकार खेलता हुआ थक कर एक वृक्षके नीचे विश्राम करने लगा और उसे नींद आ गई । दिल्लीपति वादशाह पेरोसाह (फिरोजशाह) हिसारसे शिकार खेलता हा इधर पा पहुँचा, कुँवरको सोते देख कर वढा हर्ष और कौतूहल हुआ, क्योंकि सब वृक्षोंकी छाया ढल जाने पर भी जिस वृक्षके नीचे करमचंद सोया था, छाया नहीं ढली थी। वादशाहने सैयद नासिरसे पूछा । उसने कहा कि कोई महापुरुष होगा, जगावें । हिंदू देख कर विस्मय हुश्रा और उसे तुर्क बनानेकी ठानी। बादशाहने उसे जगा कर परिचय पूछा और प्यारसे गले लगा कर बहुत सम्मानित किया । बादशाहने उसका नाम क्यामखां रक्खा और अपने साथ हिसार ले गया। उसे पढ़ानेके लिए सैयद नासिरको सौंप दिया।
इधर करमचन्दके लौटने पर ददरेमें हाहाकार मच गया। सैयदके द्वारा खबर पाकर मोटेराय हिसार गया। बादशाहने बड़ा सम्मान किया और कहा कि इसके तुर्क होनेकी चिन्ता न करो। मैं इसे अपने पुत्रकी तरह रक्खूगा; इसे पाँच हजारी पदवी मिलेगी। इस प्रकार समझावुझा कर सिरोपाव दे कर मोटेरायको विदा कर बादशाह दिल्ली गया।
क्यामखां सैयदके पास पढ़ने लगा। मीराके १२ पुत्रोंके साथ खेल-कूदमें उसके दिन बीतते थे, भोलेपनसे श्रापसमे लड़ते-झगड़ते भी थे । एक बार हाँसीसे कुतव नूरदी, नूरजहान पाए । क्यामखांको उदास देख कर उसे राजी किया और नींबू व गिदोड़े दिए । उसने पहले नींबू और फिर गिंदोड़े लिए तो पीरने कहा कि इनके गोत्रमे पहले खट्टे हो कर फिर मीठे होनेकी रीति होगी। जब क्यामखांकी पढ़ाई हो चुकी, तो सैयदने कहा अब नमाज पढ़ो, सुन्नत करो, और दीनमें आयो। क्यामखांने कहा और तो ठीक है, शादी कैसे होगी, सैयदने कहा- बड़े-बड़े राजा महाराजाओंके डोले श्रावेंगे, दिल्लीपति बहलोल अपनी पुत्री देगा। क्यामखां मुसलमान हो गया, मीर उसे
१ फतहपुर परिचयमें जेउद्दीन व जबरुद्दीन नाम लिखा है। इनके वंशज भी क्यामखांनी कहलाते हैं। क्यामसांके मुसलमान होनेका समय इस प्रन्यमें सं. १४४० लिखा है।