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[ कवि जांन कृत
लिया । (तुजुके जहांगोरो अंग्रेजी, अनुवाद, खंड २, पृ. २५९, इकबाल नामा, पृष्ठ २०३) । पृष्ठ ८०, पद्यांक ९३३. अलिफखांका मृत्यु सम्वत्..
सं० १६८३ जहांगीरके राज्यका अंतिम वर्ष था । अलिफखांकी पेंडीके अनुसार इसका जन्म संवत् १६२१ था । इसलिये ६२ वर्षकी अवस्था में रण- प्रांगण में इस वीरने अपने प्राण दिये । पृष्ठ ८२, पर्याक ९३९. ग्रन्थका रचनाकाल.....
संवत् १६९१ रासा के मुख्यांशका रचनाकाल है । इसके बादका भाग इसकी अनुपूर्ति मात्र है।
पृष्ठ ८२, पद्मांक ९३९. कवित पुरातन मैं सुन्यौ, तिह विध कर्य वखान......।
क्या इन शब्दों से यह अर्थ लिया जाय कि अलिफखांके मृत्युके कुछ ही समय बाद, किसी अन्य कविने इस विषय पर कोई कवित्त लिखा और जांनने उसे अपनी रचनाका आधार बनाया । अधिक संभव तो यह प्रतीत होता है कि केवल रासाके आदि भागके लिये कविने उसका आश्रय लिया है । अन्य बातें उसके प्रायः समसामयिक थीं ।
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पृष्ठ ८३, पर्यांक ९६०. अमरसिंह राठौर का आगरेमें काम आना......।
मुसलमानी इतिहासकारोंने इस विषय पर जो कुछ लिखा है उसका सारांश निम्नलिखित है -
अमरसिंह दरवारसे कुछ दिनोंसे अनुपस्थित रहा था। जब वह जुलाई २६, १६४४ ई० सन्के दिन वापस आया तो मीरबख़्शी सलावतखां उसे दाराके स्थान पर बादशाहसे मिलनेके लिये ले गया । अमरसिंह बांई तरफ खडा था और बादशाह शामकी नमाज के बाद कुछ हुक्म लिखा रहा था । सलावतखां मुल्ला करामतसे कुछ बातचीत करने लगा । अमरसिंहको संदेह हुआ कि सलावतखां उसकी शिकायत कर रहा है। अचानक ही अमरसिंहका खंजर सलावतखां पर पड़ा और सलावतकी इह लीला समाप्त हो गई । खलीलुल्लाखां और भजुनने एक दम अमरसिंह पर हमला किया, और शीघ्र ही कुछ और मनसबदार और गुर्जवदार उनसे आ मिले । अमरसिंह मारा गया । अमरसिंहके साथियोंने अर्जुनसे इसका बदला लेनेका प्रयत्न किया और इसी मुदारिफ मुलकचंद आदि मारे गये । अन्ततः सय्यदखां जहां और सिंहके आदमियों पर आक्रमण किया और उन्हें मार डाला ।
झगडे में मीर तुजुकखां मीरखां, रशीदखां अन्सारी आदिने अमर
इसी घटनाका अतिरंजित रूप अनेक राजपूती स्यातोंमें मिलता है । सबसे विश्वस्त वर्णनकी दो जैन कृतियां हैं जिन्हें श्री अगरचंद नाहटाने 'भारतीय विद्या' खंड २ में प्रकाशित किया था । इनके अनुसार वास्तविक घटनाका रूप यह था :
यीकानेर और नागोरके वीचमे कुछ सरहदो झगड़ा पैदा हो गया था । इसीके बाद अमरसिंह शाहजादा दाराशुकोहकी हवेलीमें बादशाहमे मिलने गया । बादशाह गुसलखाने में था । सलावतखां अमरसिंहका कुछ वाद विवाद हो गया और अमरसिंह कह बैठे "अच्छा खयर