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क्यामखां रासा; टिप्पण]
१२३ सवारका मनसवदार नियुक्त किया गया। इसके नौ वर्ष बाद दक्षिणमें उसकी मृत्यु हुई। राय मनोहर फारसीका अच्छा कवि था। पृष्ठ ५९, पद्यांक ६९७. दलपत बीकानेरीये......।
यह राजा रायसिंहके बाद बीकानेरकी गद्दी पर बैठा । सन् १६१२ ई. में जहांगीरने उससे अप्रसन्न हो कर सूरसिंहको बीकानेरकी गही दी । दलपतसिंहने हिसारके आसपास विद्रोहका झंडा खड़ा किया। पृष्ठ ५९, पद्यांक ६९८. ज्यावदी......।
संभवतः जहांगीरके मनसवदार जियाउद्दीन काजवानीसे मतलब है। नहांगीरने उसे एक हजारी मनसबदार बनाया और तबेलेके हिसाब-किताब पर नियुक्त किया । (देखें, तुजुके जहांगीरी, . अंग्रेजी अनुवाद, पृ. २५)। दयालदासने अपनी ख्यातमें इसका नाम जावदीन दिया है (पृ.१४४-६)। पृष्ठ ५९, पद्यांक ६९९. शेख कबीर......। . यह शेख सलीम चिश्तीका वंशज था। इसकी दूसरी उपाधियां शुजातखां और रुस्तमे । जमा थीं। यह मऊका रहने वाला था । जहांगीरने गही पर बैठनेके समय इसे १००० का मनसबदार बनाया। बंगालमें उसने बड़ी वहादुरीसे बादशाही सेवा की। इसकी वीरताके कारण ही बादशाहने उसे रुस्तमे जमाकी उपाधि दी थी। पृष्ठ ६१, पद्यांक ७१७. फिर पठयो पतिसाह पैं......।
__तुजुके जहांगीरीमें दलपतको पकड़ कर भेजनेका श्रेय खोश्तके फौजदार हाशिमको दिया गया है । पृष्ठ ६२, पद्यांक ७३०. दक्षिणमें अलिफखां......।
यह वास्तवमें दक्षिण पर खांजहांके आक्रमणके समयका वर्णन है। मलिक अम्बर (अग्रिम टिप्पण देखें) के अहमदनगर राज्यमें अत्यन्त प्रबल हो जाने पर जहांगीरने १६०८ में अब्दुरहीम खानखानाको उसके विरुद्ध भेजा। खानखाना असफल रहा। अहमदनगरका दुर्ग भी भगलोंके हाथसे निकल गया। नाम मात्रके लिये इससे कुछ पूर्व जहांगीर शाहजादे परवेजको दक्षिणका सिपहसालार नियुक्त कर चुका था। उसकी मददके लिये खांजहां लोदीकी अध्यक्षताम बादशाहाने एक बहुत बढी फौज भेजी जिसमें अलिफखां भी सम्मिलित था। सन् १६११ में यह निश्चय हुआ कि अब्दुल्ला गुजरातसे नासिक और त्र्यम्बककी तरफ बढ़े, और वरार एवं खानदेशसे खांजहां, मानसिंह आदि उसे सहायता प्रदान करें। किन्तु अब्दुल्लाने बिना परवाह किये एकदम हमला बोल दिया। दौलताबाद पहुँचते पहुँचते उसकी बहुत सी फौज क्षीण हो गई। बाकी फौजका बहुत सा अंश वागलाना पहुंचनेसे पूर्व नष्ट हो गया। अब्दुल्लाको हारते देख कर बाकी शाही फौजें भी पीछेकी तरफ लौट पडी । रासा कारने ठीक ही लिखा है :