SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 171
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ क्यामखां रासा; टिप्पण] ११३ पृष्ठ २०, पद्यांक २३७. खिदरखानेकौं सौंपकै, दिली चले पतिसाह...... तिमूरने खिज्रखांको दिल्लीका राज सौंपा या नहीं इस विषयमें इतिहासकारोंमें मतभेद है। उस समयके इतिहास तारीख मुबारकशाहीमें केवल इतना लिखा है कि कुछ दिन बाद खिनखां जो तिमरसे डर कर मेवातके पहादॉमें भाग गया था, वहादुर नाहिए, मुबारकखां और जिरकखांके साथ तिमूरसे मिला । तिमूरने खिन्नसांके सिवाय सवको कैद कर लिया। तिमूरने खिज्रखांको मुल्तान और देपालपुरकी जागीर दी और उसे वहाँ भेज दिया। (इलियट और डाउसन, खंड ४, पृष्ठ ३५-३६)। पृष्ठ २१, पयांक २४१.-- रासाका यह कथन ठीक नहीं है कि तिमूरके चले जाने पर खिनखांने दिल्ली पर अधिकार कर लिया और मल्लखां दिल्लीको वापस लेनेके प्रयत्नमें मारा गया। वास्तविक घटनाके लिये मल्लखां पर टिप्पण देखें। पृष्ठ २१, पद्यांक २४२ से. रासाकारने एक नवीन खिदरखांकी असत्य कल्पना की है। एकको उसने दिल्ली में तिमरका अधिकारी बनाया है और दूसरेको मुल्तानका सूवेदार माना है। वास्तवमै मुल्तानके सूबेदारका ही नाम खिज्रखा था और कुछ इतिहासकारोंके मतानुसार तिमूरने हिन्दुस्तानमें अपना - प्रतिनिधि नियुक्त किया था। रासाने गल्तीसे दौलतखांको खिज्रखां पठानका नाम दिया है। सय्यद खिन्नखांका प्रतिद्वन्दी और क्यामखाँका शत्रु था । उसीसे खिज्रखाने दिल्ली छीनी। (इलियट और डाउसन, ४, ४५)। पृष्ठ २४, पद्यांक २८२-८३. खिज्रखांने भाटियो, क्यामखानियों, सांखलो श्रादिकी सहायतासे राठौड वीर चूंडा पर चढ़ाई की । जय खिज्रखां मरोट पहुंचा तो भाटी राजकुमार चाचाने उसका अच्छा स्वागत किया। जांगलले देवराज सांखलेने मुसलमानोंको सहायता दी। नागोरके दुर्गका द्वार स्वयं चंदाने खोल दिया और वोरतापूर्वक युद्ध करता हुआ धराशायी हुअा। (देखें, छंद राउ जइससी)। पृष्ठ २५, पद्यांक २८६ से, क्यामखांका मुल्तानके खिजरखांको सहायता देना...... ___ मल्लखांकी मृत्युके बाद दौलतखांके हाथमें राजकार्यकी बागडोर श्राई । महमद नाममात्रके लिये सुल्तान बना रहा। सन् १४०७में खिज्रखांने दौलतखां पर आक्रमण किया। दौलतखांके सय साथी खिज्रखांसे जा मिले । इनमें क्यामखां भी रहा होगा। खिनखाने विजयी होने पर हिसारका जिला (सिक्क)क्यामखांको सौंप दिया। दिसम्बर १४०७ में सुल्तान महमदने हिसार पर आक्रमण किया और क्यामखांने उससे संधि कर अपने पुत्रको सुस्तानके पास भेज दिया। रासाने इसी आक्रमणको हिसार पर खिद्रखां पठानका अाक्रमण मान लेनेकी भूल की है। विजय भी दूसरे पक्षकी हुई; क्यामखांकी नहीं। सन् १४१२ में सुल्तान महमूदकी मृत्यु
SR No.010643
Book TitleKyamkhanrasa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDashrath Sharma, Agarchand Nahta, Bhanvarlal Nahta
PublisherRajasthan Puratattvanveshan Mandir
Publication Year1953
Total Pages187
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy