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________________ क्यामखां रासाके टिप्पण पृष्ठ १, पद्यांक ९. नूर महम्मदको रच्यो...... ___ अन्यकर्ताने, मुसलमान होनेके कारण, जगतकी सृष्टिको मुसलमानी परम्पराका .. किया है। पृष्ठ ४, पद्यांक ३८. वाकै राजा माद हुव...... इस पद्यसे जॉनने हिन्दू परम्पराको मुसलमानी परम्परासे जोडनेका प्रयास किया है इसके अनुसार श्रादमसे अनेक पीढ़ियोंके बाद आदि, अनादि, पुणादि, ब्रह्मादि, मेरु, मंदर कैलास, समुद्र, वशिक, राहु, रावण और धुंधुमार हुए । धुंधुमार चक्रवर्ती राजा था। शायद यह कहनेको आवश्यकता नहीं कि यह कल्पित वंशावली पुराणसम्मत नहीं है। पृष्ठ ४, पद्यांक ४४. प्रगट्यो तिहिं मारीच सुत...... सम्राट् धुंधुमारको मरीचि ऋपिका पिता बताना शायद चौहानकि भाटोंकी कल्पना रह होगी। मरीचि तो केवल ऋपि मात्र थे । पृष्ठ ४, पद्यांक ४५. वाकै राजा जमदगिन...... मरीचिका जमदग्नि, जगदग्निका परशुराम, परशुरामका शूर, शूरका वत्स, वत्सका चाइ और चाइका चन्द्रमाके स्मरणसे उत्पन्न चाहुवान - यह नवीन चौहान-परम्परा किसी अंशमें कल्पित होती हुई भी महत्वपूर्ण है। सभी चौहान अपनेको वत्स गोत्री मानते हैं; किन्तु सभी अपनेको वसको संतान मानने के लिये तैयार नहीं हैं। क्योंकि वत्स गुह-गोत्र भी हो सकता है। क्यामखांरासामें स्पष्टतः इन्हें ऋपि वरस की संतान माना गया है, और यही संभवतः ठीक है । क्योंकि अनेक प्राचीन प्रमाणों द्वारा इस कथनकी पुष्टि की जा सकती है । बिजोल्याके शिलालेख (सं. १२२६) में स्पष्ट लिखा है कि प्रथम चौहान राजा अहिच्छत्र पुरका वत्स-गोत्री 'विप्र' अर्थात् ब्राह्मण था। संवाके संवत् १३१९ और अचलगढ़ (श्राबू) के संवत् १३७७ के शिलालेखोमें भी चौहानोंका वत्स ऋपिसे सम्बन्ध, प्रायः इतना ही स्पष्ट है । केवल पृथ्वीराज-रालाके आधार पर उन्हें अग्निवंशी मानना इतिहास-विरुद्ध है। वस्तुतः आरम्भमें चौहान ब्राह्मण थे; धर्मको रक्षाके लिए क्षत्रियोचित कार्य संभालनेके कारण, बादमें उनकी गणना क्षत्रियोंमें की गई । प्राचीन कालमे इसी तरह ब्राह्मणोंसे अनेक क्षत्रिय-बंशोका और क्षत्रियोंसे अनेक ब्राह्मण-वंशोंका प्रवर्तन हुआ है। पृष्ठ ५, पद्यांक ५०. संभर लयो निकास जिहं...... पथ्वीराज-विजय एवं विजोल्याके शिलालेखमें वासुदेव चौहानको सांभरका उत्पादक माना गया है। शायद उसका यह मतलब हो कि इसी राजाने सर्व प्रथम शाकम्भरी क्षेत्रको मीलका रूप देकर नमक निकालना आरंभ किया हो।
SR No.010643
Book TitleKyamkhanrasa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDashrath Sharma, Agarchand Nahta, Bhanvarlal Nahta
PublisherRajasthan Puratattvanveshan Mandir
Publication Year1953
Total Pages187
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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