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क्यामखां रासा]
करामात परगट भई, ज्यारत करत जहांन । दरगाहको
देखत ही करामात दीवांनकी, गिरवर पर बादुर रहै, ज्यों
॥ सवईया ॥
पूजत इछ्या प्रांन ॥ ९३४ ॥
है हाजिरा रोजै पर
होत दुख दूर देखे नूर दरगाहको निरधन पावै बितु निरसुत पावै सुत औसी अद्भुत बात करम इलाहकौ । निरबुधि पात्रै बुधि वेसुधको होत सुधि मारग लहत जु भुलानो आवै राहकौ । अलिफखां चहुवांन लोभ नही कीनौ प्रांन पायो फल राख्यौ स्वांमधर्म पतिसाहको । न्यामत संपूर है जहूर हाजिरा हजूर होत दुख दूर देखे नूर दरगाहकौ ॥९३६॥ ह्वै सुख लीजिये नाम सकारे । व्याध असाध ते होत समाध मिटै अपराध अगाध जै न्यारे ।
चित कछु चितमै न रहे
?
हजूर । नूर ||३५||
उमहै कलप ब्रिछ की डारेँ । खांन अलिफ करामात पूरन चूरन है है सब रोस विकारें । देखिये ना चुखहूं दुख को मुख ह्वै सुख लीजिये नाम सकारे ॥ ९३७ ॥
प्रांनकी इंछ दीवांन पुजाँ । न्यामत और करामत पूरन होहिं सुखी जे दुखी तकि आवे । पीर महा परगट्यौ पुहमी ।
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