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[कवि जान कृत खुले देख द्रिग सुभटके, डरपैं गिर्भ सियार। बिकट लगै लैबै निकट, जो मरि गये मुछार ॥६०७॥ रुहिर जुगिनी भछि गई, स्यार मांस अरु चांम । हाड न कोऊ लेत है, असत कहावत नाम ॥६०८।। घाव जु बोले सुभटके, कहत मार ही मार । जीभ थकी तब अंगही, लाग्यौ करन पुकार ।।६०९।। साहिमखानी को लरयौ, अलिफखांनकै संग । धार मुरी हथियारकी, पै नहिं मोरयौ अंग ॥१०॥
॥ सवईया ॥ हैदल गैदल पैदल जोर के,पाये अनंत अपार पहारी। नाचत है हरखे हरि जुगिन छुटत नाल बदूक सुतारी । भीरपरी बिचले तब भीरक सांहिमखा समसेर सभारी। काहू को मुड कटी कटि काहू की ही
मिसरी पै लगी आईखारी ॥११॥ ॥ दोहा । सूर सुभट दीवांनके, बहुते आये काम ।
केते येक गनाइ है, लै लै उनको नाम ॥१२॥ येदल अरिके दल हनत, पुनि भाईया कमाल। द्वै काइम नीके लरे, नाथा और जमाल।।६१३॥ करे मुजाहद मेर पग, भीखन पुन बहलोल । लाडू अरु पेरोज खां, राख्यौ अपनी तोल ॥१४॥ द्वै खानू दौला अबू, इसकंदर रज रास । अरु मारू उसरीफ पुनि, कीनौ नांव प्रगास ॥१५॥ ऊदा परता चतुरभुज, जगा मनोहरदास । पुनि को जू हरदास ये, परे येक ही पास ॥१६॥ द्रोंद राज मोहन जुगल, मुये येक ही ठौर । कौन २ को नांव ल्यौं, कटे बहुत ही और ॥१७॥