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[कवि जान कृत
॥ दोहा ॥ हय गय नर कटि कटि पर, टूटत हैं हथियार । फिर फूटै गुरजे लगें, छूटत है रतिधार ।।८६६||
॥सवईया॥ लरत अलिफखांनु परत है घमसांन दे दै वहु दांन सिव कीनौ है निहाल जू । भसम हसम धूरि रत सत सिध मूरि
आवधि त्रिसूल लहे खपर है ढाल जू ।। बोलत है घाव सू सुभाव डमरू को जैन पायो सरभाव भयौ चाव गज खाल जू । निरत करत हरखत हर हेर हार सुंडनके व्याल और मुंडनिकी माल ज्यू ॥८६७॥ साह जू के काज कुल लाजको अलिफखांन गाढ़े पाइ कीने है पहारसे पहारमै । बाने बहु बाने लगे सूरिवां सुहाने असै जैसे फुलवारी फूल रही है बहारमै । कीचकको घांन घमसान परयो दहूं वोर घाइल धुकत मतवारेसे अहारमै । धाई गज सैन आई अन ही नबाब पर मार विचराई भाजो सिंधकी दहार में ॥८६८॥ मांतो गजराज आयो कितौ परबत धायौ झरना बहायौ मद सैन घहरानी है। रूंख ज्यौ उखारत तुण नर डारत निहार रूपचंद वासो भाजवेकी ठानी है ।। भये सनमुख आनि नवाव अलिफखांन कुंजर भजानो माथै बरछी लगानी है। गैवर घटा सो वग पंत सो लगत दत तामें सार धार मानी बीज चमकानी है ॥८६९l