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[कवि जान कृत बेटा खांन सहाबकौ, महबतखां तिह नाम । भीखनखांसू चोख चित, पै नित करत सलाम ॥५६२॥ भीखनखांहून लख्यौ, कपट महोबतखांन । तबते डिस्ट न जोरिहै, मनमें बढ़ी रिसांन ॥५६३।। तब नौहांकों, छाडिक, चल्यौ महोबतखान । आइ फतिहपुरमै रह्यो, राख्यौ दौलतखांन ॥५६४॥ महबतखां बेटी दई, फदनखांनको चाहि । ज्यों लै दैहै झूझनू, दैन जोड़ाये आहि ।।५६५।। केतक दिन सेवा करी, बहुरि बीनती कीन । मोकौं भीखनखांनने, देस निकारी दीन ॥५६६ दौलतखां तब यों कह्यो, नौंहां तेरी आहि । देखें कौन निकारिहै, तूं उत बेगौ जाहि ॥५६७।। जो भीखनखां ना रहै, मानस देहि पठाइ । वाकों नीकी भांतसों, राखौगौ समझाइ ॥ ५६८।। नौंहां बैठ्यौ जाइक, जबहि महबतखांन । भीखनखा यह बात सुनि, दल साजे अनग्यांन ॥५६९।। महबतखां तब सुनत ही, मानस दयो पठाइ । नाहरखां इतते चढ्यौ, पुंहच्यौ, बेगो जाइ ॥५७०॥ इतते महबतखां चढ्यौ, उतते भीखमखांन । आभूसरकै ताल पर, भलौ पर्यो घमसांन ॥५७१॥ नाहरखांकौं देखिकै, भीखनखां थहराइ । जैसें नाहरके तकें, बिझुकै भज्जै गाइ ॥५७२॥ भीखनखां तब भजि गयो, जीत्यो नाहरखांन । महबतखांको झंझनू, लै बैठाओ अांन ॥५७३॥ नाहरखां जुध जीतिक, आये बजत नीसांन । गरै लगायो प्यारसौं, दौलतखां दीवांन ।।५७४।।