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क्यांस खां रासां - भूमिका लिखनेके साथ-साथ उसे मुगल सम्राट शाहजहाँका साला बतलाया । इसका प्राधार अज्ञात हैं।
इसके पश्चात् पं. झावरमलजी शर्माने सन् १९४० मे हमारे द्वारा सम्पादित “राजस्थानी" त्रैमासिक (वर्ष ३ अंक ४)मे “कायमखानी नवाब अलफखॉ और उसकी हिन्दी कविता" नामक लेख छपवाया जिसमें कायमखानी वंशकी पूर्व-परम्पराके साथ सतवंतीसत, मदनविनोद एवं कविवल्लभका रचयिता अलफखौंको बतलाया । इस लेखमें पण्डितजीने पुरोहित हरिनारायणजीके अलफखॉकी मृत्यु सं. १६६३ (तलवाडे युद्ध) मे होनेके कथनपर सन्देह प्रकट किया क्योंकि कविवल्लभका रचनाकाल स्वयं ग्रन्थमें ही सं १७०४ दिया गया है । पुरोहितजीके कथनानुसार इन्होंने कायमरासाके रचयिता अलफखाँके छोटे बेटे नेढमतखॉको ही बतलाया है एवं हिन्दी साहित्यमें प्रसिद्ध ताजको कायमखानी नवाव फदनखाँकी पुत्री एवं अलफखाँ के पिता ताजखाँ (द्वितीय) की वहिन होना बतलाया है। जब मैंने इस लेखको पढा, मनमें विचार हुया कि सभी व्यक्ति जान कविको अलफखाँ बतला रहे हैं। पर ग्रन्थकारने कहीं भी इसका सूचन नहीं किया । अतः वास्तविकताकी शोध करनी चाहिए।
इसी समय बीकानेर राज्यकी अनूप संस्कृत लाइब्रेरीका पुनरुद्धार कार्य प्रारंभ हुआ और उसमे जान कविके कई प्रन्थोंकी हस्तलिखित प्रतियां प्राप्त हुई । फलतः ब्रजभारतीमें प्रकाशित (सं १९४२ में) अपने लेग्वमें मैंने जान कविके 8-१० ग्रन्थोंका उल्लेख किया था। अनूप संस्कृत लाइब्रेरी के लाइब्रेरियन श्री रावत सरस्वत बी. ए. से जान कविके सम्बन्धमें बातचीत होने पर इन्होने शेखावाटीके किसी स्थानमे जान कधि के ७० ग्रन्थोंकी संग्रह प्रतिकी जानकारी दी। उनकी दी हुई ७० ग्रन्थोंकी सूची देते हुए मैंने एक लेख भी तैयार करके रखा, और उपयुक्त संग्रह प्रतिके खरीदनेकी वात चल रही थी। इसी बीच वह प्रति मेरी सहायतासे जुलाई सन् १९४४में हिन्दुस्तानी अकडेमीने खरीद ली । सन् १९४५ में रावत सारस्वतने सरस्वती (जनवरी) एवं विश्ववाणी (मई) में जान कविके अन्योंके परिचायक दो लेख प्रकाशित किये, पर जान कविका वास्तविक नाम व परिचय वे भी प्राप्त नहीं कर सके उन्होंने नाम मुहम्मद जान होनेकी संभावना प्रगट की । श्रेकडेमीकी प्रतिके आधारसे श्रीकमल कुलश्रेष्टने हिन्दुस्तानीके जनवरी-मार्च सन् १९४५ के अंकमे उक्त प्रतिके ६८ ग्रन्थोंका ज्ञातव्य परिचय प्रकाशित किया।
___ जान कविके ग्रन्थोंमें बुद्धिसागर नामक ग्रन्थ भी था । उसकी एक प्रति दिल्लीके कूचे दिगम्बर जैन मन्दिरमें ज्ञात हुई । वहाँकै सरस्वती भण्डारको सूची अनेकान्त व० ४ २०७८ में प्रकाशित हुई । उसमें बुद्धिसागरके ग्रन्थ रचियताका नाम "न्यामतखाँ" बतलाया था। अतः दिल्ली जानेपर मैंने इस प्रतिको देखनेका प्रयत्न किया पर सफलता नहीं मिली। उसी बीच जैनाचार्य श्रीजिन
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वास्तवमें यह सम्वत्' भी सही नहीं है । यहाँ सम्वत् १६८३ चाहिए । श्रीयुत मोतीलाल मेनारिया और कमलकुलश्रेष्ठने भी इसीका अनुकरण किया है, क्योंकि कविनें क्याम रासोके अतिरिक्त किसी अन्यमे अपना वास्तविक नाम नहीं दिया है। हिन्दुस्तानी, भाग १५ अंक १.
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