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________________ ...... : प्रतिभामूर्ति पं. सुखलालजी ... श्री. अंगरचन्द नाहटा भारतीय दर्शनके महान विद्वान् और मौलिक चिन्तक व लेखक पं० सुखलालजीकी प्रतिभाका संवसे पहला परिचय मुझे उनके 'पंचप्रतिक्रमण' और कर्मग्रन्थ' ४ भागोंके हिन्दी अनुवादसे मिला । मुझे छोटी उम्रसे ही धार्मिक ग्रन्थोंके अध्ययन और यथाशक्ति धार्मिक क्रियाकाण्डों और सिद्धान्तोंको जीवनमें उतारनेकी रुचि रही है। स्कूलमें धार्मिक अभ्यासमें प्रतिक्रमणके पाठ कंठस्थ तो कर लिए और यदा कदा सामायिक, प्रतिक्रमण भी कर लेता था; पर वे पाठ प्राकृतमें थे, इसलिये उसके अर्थ व भाव जाननेकी उत्कंठा लगी रहती थी । सं० १९८३ -८४ के करीब मैंने जब पं० सुखलालजीके पंचप्रतिक्रमणका हिन्दी अनुवाद देखा तो मुझे बहुत खुशी हुई और इससे पहले प्रतिक्रमणके जितने भी गुजराती व हिन्दी अर्थ और भावार्थ पढ़नेको मिले उन सवसे पंडितजीवाला संस्करण मुझे बहुत उच्चकोटिका लगा। इसी समयके आसपास मैं कलकत्ता व्यापारिक शिक्षाके लिये गया, तो मुझे मेरे मित्र मोहनलाल नाहटा या अन्य किसीसे ज्ञात हुआ कि पंडितजी वहादुरसिंहजी सिंघीके यहाँ पधारे हुए हैं । हम उनसे मिलनेके लिये गये। ऐसा प्रसंग कलकत्तेमें २-३ वार मिला । अनेक व्याख्यान सुने, उनसे बातचीत भी की, तो उनकी असाधारण प्रतिभा और पांडित्यका परिचय मिला । एक वार ज्ञात हुआ कि पंडितजी सिंघीजीके यहाँ 'आनन्दघन चौबीसी' या पदोंका विवेचन किया करते हैं, पर मुझे उनका वह विवेचन सुननेका मौका नहीं मिला । . सं० १९८४ की वसंतपंचमीको हमारे गुरु श्री कृपाचन्द्रसूरिजी बीकानेर पधारे। उसी समयके आसपास पं० सुखलालजीके हिन्दी अनुवादके साथ चारों कर्मग्रन्थोंको पढ़नेका मौका मिला । उसकी प्रस्तावना आदि वहुत ही महत्त्वपूर्ण लगी । एक प्रज्ञाचक्षु व्यक्ति जैन धर्मका इतना गम्भीर ज्ञान प्राप्त कर उसे सरल हिन्दी भाषामें इतने अच्छे ढंगसे अपने और ग्रन्थकारके भावोंको व्यक्त करता है, यह देखकर उनके प्रति श्रद्धाका भाव जगा व उनके पांडित्यकी गहरी छाप सदाके लिये दिल पर अंकित हो गई। फिर तो गुजरातीमें लिखे गए उनके कई लेख 'पुरातत्त्व' आदिमें पढ़नेको मिले । इस तरह उनका प्रभाव मेरे पर दिनों दिन गहरा होता गया ।. . पंडितजीके विरोधी मुझे उनके सम्बन्धमें विपरीत वात भी कहते थे, पर मेरे पर जो उनका गहरा प्रभाव पड़ चुका था उसमें उससे कमी नहीं आई।
SR No.010642
Book TitlePandit Sukhlalji Parichay tatha Anjali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPandit Sukhlalji Sanman Samiti
PublisherPandit Sukhlalji Sanman Samiti
Publication Year1957
Total Pages73
LanguageHindi, Gujarati, English
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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