________________
EKAtul
-
एशिया महाद्वीप सदा ही धर्मप्रवर्तकों, तत्त्वचिंतकों और साधकोंकी जन्मभूमि रहा है । इस महागौरवको निभाये रखनेका श्रेय विशेषतः भारतवर्षको है। पुराणयुगमें भगवान रामचंद्र और कर्मयोगी श्रीकृष्ण, इतिहासकालमें भगवान महावीर तथा भगवान बुद्ध और अर्वाचीन युगमें महात्मा गांधी, योगी श्री. अरविन्द एवं संत विनोवा जैसे युगपुरुषोंको जन्म देकर भारतवर्षने धर्मचिंतनके क्षेत्रमें गुरुपद प्राप्त किया है । युगोंसे भारतवर्षने इस प्रकारके अनेक तत्त्वचिंतकों, शास्त्रप्रणेताओं, साधकों, योगियों और विद्वानोंको जगतीतल पर सादर समर्पित किया है।
प्रज्ञाचक्षु पंडित सुखलालजी उन्हींमसे एक हैं । वे सदा ही सत्यशोधक, जीवनसाधक, पुरुषार्थपरायण तथा ज्ञान-पिपासु रहे हैं। इस पंडित पुरुपने ज्ञान-मार्ग पर अपने अंतर्लोकको प्रकाशित कर उज्ज्वल चरित्र द्वारा जीवनको निर्मल और ऊर्ध्वगामी बनानेका निरंतर प्रयत्न किया है। इनकी साधना सामंजस्यपूर्ण है, इनकी प्रज्ञा सत्यमूलक तथा समन्वयगानी है और इनका जीवन त्याग, तितिक्षा एवं संयमयुक्त है ।।
जन्म, कुटुम्ब और बाल्यावस्था पंडितजीकी जन्मभूमि वही सौराष्ट्र है जहां कई संतों, वीरों और साहसिकोंने जन्म लिया है। झालावाड जिलेके सुरेन्द्रनगरसे छः मीलके फ़ासले पर लीमली नामक एक छोटेसे गांवमें संवत् १९३७ के मार्गशीर्षकी शुका पंचमी, तदनुसार. ता. ८-१२-१८८० के दिन पंडितजीका जन्म हुआ था । इनक पिताजीका नाम संघजीभाई था। वे विसाश्रीमाली ज्ञातिके जैन थे। उनका उपनाम संघवी और गोत्र धाकड (धर्केट ) था । जब पंडितजी चार ही