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तत्त्वचर्चा
उठते रहेगे । एक समयके साक्षीभावमे 'मैं' पूरा का पूरा आजाऊँ तो 'मेरा' नाश हो जाए । साक्षीभावमें [ साक्षीभावके विकल्पमे ] भी एकत्व नही करना है । जहाँसे वह [ साक्षीभाव ] उठता है.. वो ही भूमि - नक्कर (स्थिर, ठोस ) स्थल - 'मै' हूँ । १७९.
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वस्तु वर्तमानमे प्रत्यक्ष स्थित है, वर्तमानमे ही विद्यमान है । एक समयकी पर्यायके पीछे पूर्ण वस्तु स्थित है; लक्ष्य करे उसी क्षण दिख जाती है । [ अर्थात् वेदनमे आ जाती है । ] १८०.
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देव - शास्त्र - गुरुकी इज़्ज़त करते है, क़ीमत करते है, तो वे ही कहते है कि तू तेरी क़द्र कर ! १८१.
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'स्वयंसे ही लाभ है' ऐसा न माने तो अन्यसे लाभ मानना ही पड़े, यह नियम है । और 'अपने से ही लाभ है' ऐसा माने तो परसे लाभ माना ही नही जाता, यह भी नियम है । १८२.
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योग्यता और पात्रता ठीक [ उत्कृष्ट ] होवे तो एक ही क्षणमे काम हो जाये, ऐसी बात है 1१८३.
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पहले विकल्प उठे और बादमे समाधान करे कि 'ये स्वतन्त्र है' [ तो यह यथार्थ नही ] । विकल्पके साथ ही साथ उसी क्षण उससे भिन्नता होनी चाहिए । १८४.
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प्रश्न :
धारणाके बिना अनुभव हो सकता है क्या ?
उत्तर :- धारणा नही होवे और अनुभव हो जाये, यह सवाल ही यहाँ नही है । यहाँ तो कहते है कि धारणा होनेपर भी [ बिना पुरुषार्थ ] अनुभव नही होता । धारणामे 'मै चैतन्यमूर्ति हूँ
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ऐसा टॉक दो, और