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समर्प
माननीय बाल-ब्रह्मचारी, अभीक्ष्ण-ज्ञानोपयोगी , पूज्य मुनि श्रीसमन्तभद्रजीको
उनके
जिनशासनानुराग, विद्याप्रेम, कषायजय, सरल-सत्य-व्यवहार गुणानुरक्ति, विषयविरक्ति, परोपकारवृत्ति, सदाचित्तप्रसत्ति-जैसे
सद्गुणोंके सम्मानमें
यह कृति जो कि ध्यानविषयक प्रतीवोपयोगिनी पुरातनाचार्य-कृतिको सानुवाद-व्याख्यादिके रूपमें अलकृति है, सादर समर्पित।
जुगलकिशोर मुख्तार