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________________ १७६ तत्त्वानुशासन 'उस अर्हत् अथवा सिद्धके ध्यानसे व्याप्त आत्माको देखकर महाग्रह-सूर्य-चन्द्रमादिक--प्रकम्पित होते हैं, भूत तथा शाकिनियाँ नाशको प्राप्त हो जाती हैं-अपना कोई प्रभाव जमाने नही पाती-और क्र र जीव क्षणमात्रमे अपनी क रता छोड़कर शान्त बन जाते हैं।' व्याख्या-यहाँ दूसरो पर इस ध्यानका क्या प्रभाव पडता है उसे यत्किचित् सूचित किया गया है और उसमे महाग्रहोके प्रकम्पन, भूतो तथा शाकिनियोके पलायन और क्रूर-जन्तुओंके क्षणभरमे शमनकी बात कही गई है। ___ ध्यान-द्वारा कार्यसिद्धिका व्यापक सिद्धान्त यो यत्कर्म-प्रभुवस्तध्यानाविष्ट-मानसः' । ध्याता तदात्मको भूत्वा साधयत्यात्म-वांछितम् ।।२०० 'जो जिस कर्मका स्वामी अथवा जिस कर्मके करने में समर्थ देव है उसके ध्यानसे व्याप्तचित्त हुआ ध्याता उस देवतारूप होकर अपना वांछित अर्थ सिद्ध करता है।' व्याख्या-यहाँ ध्यानके फलका व्यापक सिद्धान्त बतलाते हुए, यह प्रतिपादन किया गया है कि जो देवता (शक्ति या व्यक्तिविशेष) जिस कर्मके करनेमे समर्थ अथवा उसका अधिष्ठातास्वामी है उसको ध्यानाविष्ट करनेवाला घ्याता तदात्मक होकर अपने वाछित कार्यको सिद्ध करता है। वैसे कुछ ध्यानो और उनके फलका निर्देश पार्श्वनाथ-भवन्मंत्री सकलीकृत-विग्रहः । महामुद्रां महामंत्रं महामण्डलमाश्रितः ॥२०१॥ १. मु मे मात्मन । २. म सिजु पार्श्वनायो ।
SR No.010640
Book TitleTattvanushasan Namak Dhyanshastra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1963
Total Pages359
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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