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अर्ह
गापाका गगलाचरण ध्यान-अग्निमे जला कर्ममल, किया जिन्होंने आत्मविकास, सब-दुस-हन्द-रहित होकर जो करते हैं लोकाऽग्र-निवास। उन सिद्धोको सिलि-अर्थ में बन्दू धरसर परमोल्लास, मगलकारी ध्यान जिन्होफा, महागुणोके जो आवास ॥१॥ घातिकर्म-गल नाग जिन्होंने, पाया अनुपम-ज्ञान अपार, सब जीवोको निज-विकामका, दिया परम उपदेश उदार । जिनके सदुपदेगसे जगमे, तीर्थ प्रवर्ता हुआ मुधार, उन अर्हन्तोको प्रणमू में भक्तिभावसे वारवार ॥२॥ तत्वोका अनुशासन जिसमे, सिद्धि-सोत्यका जो आधार, निश्चय औ' व्यवहार मोक्षपथ, प्रकटाता आगम अनुसार। रामसेन-मुनिराज-रचित जो, ध्यान-शास्त्र अनुपम अविकार । व्यास्या सुगम करूं मैं उसकी, निज-परके हितको उर धार ॥३॥