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प्रस्तावना
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तब भी निराश होने की कोई बात नहीं है हमें पुनः अपनी मूलशिक्षाओंकी ओर ध्यान देना है। हमें जैन कर्मवादके रहस्य और उसकी मर्यादाओं को समझना है और उनके अनुसार कार्य करना है 3 माना कि जिस बुराई का हमने ऊपर उल्लेख किया है वह जीवन और साहित्य में घुल-मिल गई है पर यदि इस दिशा में हमारा दृढ़वर प्रयत्न चालू रहा तो वह दिन दूर नहीं जब हम जीवन और साहित्य दोनों में आई हुई इस बुराई को दूर करनेमें सफल होंगे ।
समताधर्मकी जय, गरीबी और पूँजीको पाप-पुण्यका फल न बतलानेवाले कर्मवादकी जय, कृत अछूतको जातिगत न माननेवाले कर्मवादकी जय, परम श्रहिंसा धर्मकी जय ।
जैनं जयतु शासनम् ।