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________________ 33 88 प्रस्तावना समझा जाता है । पुत्रकी प्राप्ति होने पर मनुष्य भ्रमवश उसे अपने शुभ कर्मका कार्य समता है और उसके मर जानेपर भ्रमवश उसे अपने अशुभ कर्मका कार्य मना है । पर क्या पिताके अशुभोदयसे पुत्रकी मृत्यु या पिताके शुभोदयसे पुत्रकी उत्पत्ति सम्भव है ? कभी नहीं । मच तो यह है कि ये इष्टसयोग या इष्टवियोग आदि जितने भी कार्य हैं वे अच्छे बुरे कर्मों के कार्य नहीं । निमित्त और बात है और कार्य और बात | निमित्तको कार्य कहना उचित नहीं है । ५ गोम्मटमार कर्मकाण्ड में एक नोकर्म प्रकरण आया है। उससे भी उक्त कघनकी ही पुष्टि होती है । वहाँ मूल और उत्तर कर्मो के नोकर्म बतलाते हुए ईष्ट भन्न पान आदिको भलाता वेदनीयका, विदूषेक या बहुरूपियाको हास्यकर्मका, सुपुत्रको रतिकर्मका, इष्टदियोग और अनिष्ट संयोगको श्ररति कर्मका, पुत्रमरणको शोक कर्मका, सिंह आदिको भय कर्मका और ग्लानिकर पदार्थोंको जुगुप्सा कर्मका नोकर्म द्रव्यकर्म बतलाया है । गोम्मटसार कर्मकाण्डका यह कथन तभी बनता है जब धन सम्पत्ति और after आदिको शुभ और अशुभ कर्मो के उदय में निमित्त माना जाता है 1 कर्मो के अवान्तर भेद करके उनके जो नाम गिनाये गये हैं उनको देखने से भी ज्ञात होता है कि बाह्य सामग्रियोंकी अनुकूलता और प्रतिकूलतायें कर्म कारण नहीं हैं। वाह्य सामग्रियों की अनुकूलता और प्रतिकूलता या तो प्रयत्नपूर्वक होती है या सहज ही हो जाती है। पहले साता वेदनीयका उदय होता है और तब जाकर इष्ट सामग्रीको प्राप्ति होती है ऐसा नहीं है । किन्तु हृष्ट सामग्रीका निमित्त पाकर साता वेदनीयका हृदय होता है ऐसा है । (१) गाथा ७३ । (२) गाथा ७६ । (३) गाथा ७७ ।
SR No.010639
Book TitleSaptatikaprakaran
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages487
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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