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________________ ४ दिगम्बर परम्पराकी सित्तरी [दिगम्बर परम्परामें प्राकृत पंचसंग्रहका सित्तरी एक प्रकरण है। टममें मायगाथाओंके साथ इस प्रकरणी पाँचसीसे कुछ अधिक गाथाएँ है। पाठकों की जानकारी के लिये मलपकरण यहाँ दिया जा रहा है। इससे उन्हें दोनों परम्पराओं के सित्तरी प्रकरणमें कहाँ कितना अन्तर है इस वातके जानने में सुविधा होगी। इस सित्तरीके मूलरूपने निश्चित करने का यह अन्तिम प्रयत्न न होकर प्रथम प्रयत्न है, पाठक 'इतना ध्यान रखें। ] सम्पादक मिटुपदेहि महत्व बंधोदयमंतपयदिडाणानि । वोच्छं सुण सम्वेवं णिरसद निटिव्वादादो ॥ १॥ कदि वर्धती वेदि कदि कदि वा पढिठाणकामंसा । मूलुत्तरपयढीसु य भंगवियप्या दु बोहवा ॥२॥ अहिवहसत्तबधगेमु अष्टेव न्दयकम्मंसा । एगविहे तिविगप्पो एगविगप्यो भवं धम्मि ॥३॥ सतहवंच अट्टोटयंस तेरससु जीवठाणेतु । एल्छन्मि पंच मंगा दो मंगा होति केवलिणो॥४॥ महमु एयवियप्पो छासु वि गुणपिणदेसु दुधियप्यो । परोयं पत्तेयं बंधोदय तामागं ॥2॥ (१) मेरे मित्र पं० हीरालालजी सिद्धान्त शास्त्रीको कृपासे पंचाग्रह को हमें एक ही प्रति मिल सकी। प्रयत्न करने पर भी हम इसरी प्रति प्राप्त नहीं कर सके । इसलिये नहाँ मूल गाथा शब्द या व्याकरण सम्बन्धी अशुद्धि प्रतीत हुई वहाँ हमने ययासम्मव उसका सुधार कर दिया है । -सम्पादक
SR No.010639
Book TitleSaptatikaprakaran
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages487
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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