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________________ ३१६ . सप्ततिकाप्रकरण वन्ध होने लगता है, अतः उनके ८६ की सत्ता सम्भव नहीं। इस प्रकार २८ प्रकृतिक बन्धस्थानमें कुल १६ सत्तास्थान होते है। २९ का बन्ध करनेवालेके ये पूर्वोक्त आठ उदयस्थान होते हैं। इनमेंसे २१ और २६ के उदयमें ६२,८८, ८६, ८०, ७८, ९३ और ८९ ये सात-सात सत्तास्थान होते हैं। यहाँ तियेंचगति प्रायोग्य २६ का बन्ध करनेवालोके प्रारम्भके पाँच मनुष्यगतिप्रायोग्य २६ का वन्ध करनेवालोंके प्रारम्भके चार और देवगति प्रायोग्य २६ का बन्ध करनेवालोके अन्तिम दा सत्तास्थान होते हैं। २८, २६ और ३० के उदयमे ७८ के विना पूर्वोक्त छह-छह सत्तास्थान होते हैं। ३१ के उदयमें प्रारम्भके चार और २५ तथा २७ के उदयमें ६३, ६२, ८६ और ८८ ये चार-चार सत्तास्थान होते हैं। इस प्रकार २९ प्रकृतिक वन्यस्थानमे ४४ सत्तास्थान होते हैं। ३० का वन्ध करनेवालेके २६ के बन्धके समान वे ही आठ उदयस्थान और प्रत्येक उदयस्थानमें उसी प्रकार सत्तास्थान होते हैं। किन्तु यहाँ इतनो विशेपता है कि २१ के उदयमें पहले पाँच सत्तास्थान तिर्यंचगतिप्रायोग्य ३० का वन्ध करनेवालेके होते हैं और अन्तिम दो सत्तास्थान मनुष्यगतिप्रायोग्य ३० का वध करनेवाले देवोंके होते हैं। तथा २६ के उदयमे ९३ और ८९ ये दो सत्तास्थान नहीं होते, क्योकि २६ का उदय तियच और मनुष्योके अपर्याप्तक अवस्थामें होता है, परन्तु उस समय देवगतिप्रायोग्य या मनुष्यगति प्रायोग्य ३० का वन्ध नहीं होता, अत यहाँ ९३ और ८९ की सत्ता नहीं प्राप्त होती। इस प्रकार तीस प्रकृतिक बन्धस्थानमें कुल ४२ सत्तास्थान प्राप्त होते हैं। तथा ३१ और १ का बन्ध करनेवालेके उदयस्थानी और सत्तास्थानोंका सवेध मनुप्यतिके समान जानना चाहिये । उससे इसमें कोई विशेषता नहीं है। इस प्रकार इन्द्रियोंकी अपेक्षा संवेधका कथन समाप्त हुआ।
SR No.010639
Book TitleSaptatikaprakaran
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages487
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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