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________________ २६२ सप्ततिकाप्रकरण और २१ ये तीन सत्त्वस्थान होते हैं। किस बन्धस्थान और उदयस्थानके रहते हुए कितने सत्त्वस्थान होते हैं इसकी विशेष कथनी पहले ओघप्ररूपणाके समय कर आये है, अतः वहाँसे जान लेना चाहिये । इस प्रकार मोहनीय की प्ररूपणा समाप्त हुई। १५. गुणस्थानों में नामकर्म के संवेध भंग - अब गुणस्थानोमे नामकर्मके बन्ध, उदय और सत्त्वस्थानोका विचार करते हैंछण्णव छक्कं तिग सत्त दुगं दुग तिग दुगं तिगष्ट चऊ । दुग छच्चउ दुग पण चउ चउ दुग चउ पणग एग चऊ ॥४१॥ एगेगम एगेगमट्ट छउमत्थ केवलिजिणाणं । एग चऊ एग चऊ अट्ठ चउ दु छक्कमुदयंसा ॥५०॥ अर्थ- नामर्मके क्रमसे मिथ्यात्वमें छह, नौ, छह; सास्वादनमें तीन, सात, दो; मिश्रमे दो, तीन, दो; अविरत सम्यग्दृष्टिमें तीन, पाठ, चार देशविरतमे दो, छह, चार; प्रमत्तविरतमे दो, पाँच, चार, अप्रमत्तविरतमे चार, दो, चार, अपूर्वकरणमे पाँच, एक, चार; अनिवृत्तिकरणमें एक, एक, आठ और सूक्ष्म सम्परायमे एक, एक, आठ बन्ध, उदय और सत्त्वस्थान होते हैं। छद्मस्थ जिनके क्रमसे उपशान्तमोहमें एक, चार तथा क्षीणमोहमें एक, चार उदय और सत्वस्थान होते हैं। तथा केवली जिनके सयोगिकेवली गुणस्थानमे आठ, चार और अयोगिकेवली गुणस्थानमे दो, छह क्रमसे उदय और सत्त्वस्थान होते हैं। (१) 'छण्णव छत्तिय सग इगि दुग तिग दुग तिणि अट्ट चत्तारि । दुग दुग चदु दुग पण चदु चदुरेयचदू पणेयचदू ॥ एगेगमट्ठ एगेगमट्ट चदुमट्ठ केवलिजिणाएं । एग चदुरेग चदुरो दो चदु दो छक्क बधउदयसा ॥' -गो० कर्म, गा० ६६३-६९४ ।
SR No.010639
Book TitleSaptatikaprakaran
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages487
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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