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________________ योगीमें भगविचार २४१ थी । किन्तु साम्बादनके वैक्रिय मिश्रकाययोगमें नपुंसकवेदका उदय नहीं होता, अत .२ योगोंकी तो ४८ चौबीसी हुई और वैक्रिय मिश्रके ४ पोडशक हुए । इस प्रकार यहां सब भग १२१६ होते है। सम्यग्मिय्यादृष्टि गुणग्थानमें ४ मनोयोग, ४ वचनयोग औदारि काययोग और वैक्रियकाययोग ये १० योग और भगोंको ४ चौवीसी होनी हैं, अत ४ चौबीसी को १० से गुणित करने पर यहां कुल भग ६६० होते हैं। अविरतमम्यष्टि गुणस्थानमें १३ योग और भगोकी ८ चौवीसी होती हैं। किन्तु ऐसा नियम है कि चौथे गुणस्थानके वैक्रियमिश्रकाययोग और कार्मणकाययोगमे स्त्रीवेद नहीं होता, क्योकि अविरत सम्यग्दृष्टि जीव मरकर स्त्रीवेदियोम नहीं उत्पन्न होता। इसलिये इन दो योगीमें भगोकी आठ चौवीसी प्राप्त न होकर आठ पोडशक प्राप्त होते हैं। यहा पर मलयेगिरि आचार्य लिखते है कि स्त्रीवेदी सम्यग्दृष्टि जीव वैक्रियमिभकाय योगी और कार्मण काययोगी नहीं होता यह कथन बहुलाताकी अपेक्षासे किया है। वैसे तो कदाचित् इनमें भी स्त्रीवेटके साथ सम्यग्दृष्टियोका उत्पाद देखा जाता है इसके लिये उन्होंने चूर्णिका निम्न वाक्य उद्धृत किया है । यथा 'कयाइ होन इत्यिवेयगेसु वि।' अर्थात्-'कदाचित् सम्यग्द्रष्टि जीव स्त्रीवेदियोमे भी उत्पन्न होना है।' (1) दिगम्बर परपरामें यही एक मत मिलता है कि स्त्री वेदियों में सम्यग्दृष्टि जीव मरकर नहीं उत्पन्न होता ।
SR No.010639
Book TitleSaptatikaprakaran
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages487
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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