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________________ .", सप्ततिकाप्रकरण स्थानोके १३० भंग हुए। इसी प्रकार तेइन्द्रिय पर्याप्तक के १३० भंग और चौइन्द्रिय पर्याप्तकके भी १३० भंग जानना चाहिये । - ___ असंज्ञी पंचेन्द्रिय पर्याप्तकके भी २३, २५, २६, २९, और ३० इन पांच वन्धस्थानोमेसे प्रत्येक बन्धस्थानमें विकलेन्द्रियों के समान छब्बीस छब्बीस भंग होते हैं जिनका योग १३० होता है। परन्तु २८ प्रकृतिक बन्धस्थानमें ३० और ३१ प्रकृतिक दो उदयस्थान ही होते हैं । सो यहां प्रत्येक उदयस्थानमे ९२, ८८ और ८६ ये तीन तीन सत्त्वस्थान होते हैं। इनके कुल भंग छह हुए। यहां कुल तीन सत्त्वस्थान ही क्यों होते हैं इसका कारण यह है कि २८ प्रकृतिक बन्धस्थान देवगति और नरकगतिके योग्य प्रकृतियोका बन्ध करते समय ही होता है सो यहां ८० और ७८ ये दो सत्त्वस्थान सम्भव नहीं, क्यों कि देवगति और नरकगतिके योग्य प्रकृतियोका बन्ध पर्याप्तकके ही होता है । इस प्रकार असंज्ञी पंचेन्द्रिय पर्याप्तक जीवस्थानमें कुल भंग १३६ होते हैं । तथा संजी पंचेन्द्रिय पर्याप्तकके २३ प्रकृतिक बन्धस्थानमें जिस प्रकार पहले असंज्ञीके २६ सत्त्वस्थान कहे उसी प्रकार यहां भी कहना चाहिये। २५ प्रकृतिक बन्धस्थानमें २१, २५, २६, २७, २८, २६,३० और ३१ये ८ उदयस्थान वतलाये हैं। सो इनमेंसे २१ और २६ इन दो में तो पांच पाच सत्त्वस्थान होते हैं। तथा २५ और २७ उदयस्थान देवोके ही होते हैं अतः इनमें ९२ और ८८ ये दो दो सत्त्वस्थान ही होते हैं। अव शेष रहे चार उदयस्थान सो प्रत्येकमें ७८ के बिना चार चार सत्त्वस्थान होते हैं।
SR No.010639
Book TitleSaptatikaprakaran
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages487
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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