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सप्ततिकाप्रकरण प्रकृतिक उदयस्थान होता है। यहाँ भी एक ही भंग है। तदनन्तर भापापर्याप्तिसे पर्याप्त हुए जीवके दुःस्वरके मिला दने पर २९ प्रकृतिक उदयस्थान होता है। इसका भी एक हो भंग है। इस प्रकार नारकियोके पॉच उदयस्थानोके कुल भग पाँच होते हैं।
ये अवतक एकेन्द्रिय आदि जीवो के जितने उदयस्थान वतला आये हैं उनके कुल भंग ४२+ ६६+४९६२+ २६५२+ ६४+५ =७७९१ होते है। __अब किस उदयस्थानमे कितने भग होते है इसका विचार करते है
एग वियालेक्कारस तेत्तीसा छस्सयाणि तेत्तीसा। वारससत्तरससयाणहिगाणि विपंचसीईहिं ॥२७॥ अउणत्तीसेक्झारससयाहिगा सतरसपंचसट्ठीहि । इक्कक्कगं च वीसादलृदयंतेसु उदयविहीं ॥२८॥ अर्थ-बीससे लेकर आठ पर्यन्त १२ उदयम्थानोमें क्रमसे १,४२, ११, ३३ ६००, ३३, १२०२, १७८५, २९१७, १९६५, . १ और १ भंग होते है।
(१) गोम्मटसार कर्मकाण्डमे इन २० प्रकृतिक आदि उदयस्थानोंके मग क्रमश १, ६०, २७, १९, ६२०, १२, ११७५, १७६०, २६२१, १९६१, १ और १ बतलाये हैं। यथा
वीमादीण भगा इगिदालपदेसु मभवा कमसो। एक्क सट्ठी चेत्र य सत्तावीसं च उगुवीस ॥ ६०३ ॥ वीसुत्तरछच्चसया बारम पण्णत्तरीहिं सजुता। एक्कारससयसखा सत्तरससयाहिया सट्ठी ॥ ६०४ ॥ ऊपत्तीस- । सयाहियएक्कावीसा तदी वि एकट्ठी। एक्कारससयसहिया एक्केश्क विमरिंगा भंगा ।। ६०५ ॥
इन भगोंका कुल जोड़ ७७५८ होता है।