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________________ प्रस्तावना आ रही है। मतिका यह नाम इपी अाधारसे रखा गया जान पडता है। इसे पष्ठ कर्मप्रन्य भी कहते है। इसका कारण यह है कि वर्तमानमें कर्म ग्रन्योंकी जिम क्रमसे गणना की जाती है उसके अनुगर इसका छठा नम्बर लगता है। गाथासख्या-प्रस्तुन ग्रन्यका मप्ततिका यह नाम यद्यपि गाथाभाकी मरया आधारसे रग्या गया है तथापि इसकी गाथाओंकी संख्या विषयमें मतभेद है। श्रवनक हमारे देखने में जितने संस्करण भाये हैं उन सबमें इसकी गाथाओंकी अलग अलग सख्या दी गई है। श्री जैन श्रेयस्कर मण्डलकी ओरसे इनका एक सम्करण म्हेसाणासे प्रकाशित हुआ है उपमें इसकी गाथाओंकी सख्या ९१ दी गई है। प्रकरण रत्नाकर चौया भाग बम्बईसे प्रकाशित हुआ है उसमें इसको गाथाओंकी मरया ९४ दी गई है। प्राचार्य मलपगिरिकी टीकाके साथ इसका एक सम्करण श्री आत्मानन्द जैन ग्रन्थमालासे प्रकाशित हुआ है उसमें इसकी गाथाओंकी संख्या ७२ दी गई है। और चूर्णिके साथ इसका एक संस्करण श्री ज्ञानमन्दिर ढमोईसे प्रकाशित हुआ है उसमें इसकी गाथाओंकी सख्या' ७१ टी गई है । इसके अतिरिक्त ज्ञानमन्दिर ढभोईसे प्रकाशित होनेवाले सस्करणमें जिन तीन मूल गाथा प्रतियोंका परिचय दिया गया है उनके आधारसे इसकी गाथाओंकी सरया ६१,९२ और ९३ प्राप्त होती है। ____ अब देखना यह है कि इसकी गाथाओंकी संख्याक विषयमें इतना मतभेद क्यों है। छानबीन करने के बाद मुझे इसके निम्नलिखित तीन कारण ज्ञात हुए है। (७) यह चूर्णि ७१ गाथाओं पर न होकर ८६ गाथाओं पर है। इससे चूर्णिकारके मतमे सप्ततिकाकी गाथाओंकी संख्या ८६ सिद्ध होती है। इसमें अन्तर्भाष्य गाथाएँ भी सम्मिलित हैं।
SR No.010639
Book TitleSaptatikaprakaran
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages487
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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