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________________ धर्माभ्युदय महाकाव्य योग्य सम्मान उपायनो-मेटणां वडे वस्तुपाले र्यु हतु. संघे प्रस्थान करी नामेय प्रभुनी भक्ति अने कीर्ति प्रदर्शित करतां कासहदमां पडाव नाख्यो ज्या वस्तुपाळे जिनार्चाओ करी हत्ती, र उदयप्रभना कथनने सुकृतसंकीर्तनथी टेको मळे छे. वधुमां ते उमेरे छे के वस्तुपाळे अहीं नामितनुज (ऋषभदेव ) ना महाप्रासादमा महोत्सव रच्यो हतो. ज्यारे वसंतविलासनो कर्ता संघ कासहदना बदले वलभिपुरमा मेलाण कर्यु होवार्नु कहे छे' ज्यांथी विजयसेनसूरिए शधुंजय पर्वतने वताव्यो. वस्तुपाळे अहीं स्वामिवात्सल्य यु हतुं. आथी स्पष्टरीते जणाय छे के धर्माभ्युदयना यात्रावर्णनथी वसंतविलासनुं यात्राविवरण जुटुं छे. आ सिवाय प्रण वीजा केटलांक सूचनो मळी आवे छे जेथी बन्ने ग्रंथकारोए जुदी जुदी यात्रानी नोंध लीधी हती ते हकीकतने वधु पुष्टि आपे छे. एनुं तुलनात्मक विवेचन हवे पछी करवामां आव्यु छे: त्यांथी संघे प्रयाण करी विमलाद्रि उपर आरोहण कर्यु. त्यां जई नाभिजिनेशना उत्कट दर्शनाभिलाषी वस्तुपाले पूर्ण प्रेमभक्तिवडे स्नात्रमहोत्सव को. विनोच्छेदक कपर्दी यक्षनु पूजन, अर्चन सारी रीते करी तेमने प्रसन्न कर्या. संघमा आवेल यात्रिकोने श्रमान्वित थयेला जोई मंत्रिवर्य, हृदय स्नेहार्द्र बन्यु, त्यां तेमणे भगवान आदिनाथना मंदिर पासे इंद्रमंडप बंधाववानो प्रारंभ कर्यो एम उदयप्रभसूरि जणावे छे ज्यारे वसंतविलासनो कर्ता संघ पालीताणा गयो त्यां वस्तुपाले पार्श्वप्रभुनु पूजन कयु, अने व्यारवाद संघे विमलाचल उपर प्रस्थान कर्यु. विमलाद्रि उपर जई सौथी प्रथम कपर्दी यक्षनी विविध उपचारो वडे पूजा कर्या पछी भगवान आदिनाथनी अष्टप्रकारी पूजा रचीने, प्रशंसनीय चीनवस्त्र (चीनी रेशम)नुं ध्वजारोपण कयु हतुं एम नोंधे छे.' परंतु अरिसिंह तो धर्माभ्युदयना कथन मुज़ब वस्तुपाले शत्रुजय उपर जई कपर्दी . यक्ष- पूजन करीने भगवान आदिनाथनो महामहोत्सव को हतो एम कहे छे. तेमां वसंतविलास प्रमाणे पादलिप्तपुरनी हकीकत जोवामां आवती नथी. आथी पण उदयप्रभ अने अरिसिंहनां यात्रावर्णनो एक ज संघना विवेचनो होवानुं स्पष्ट जणाय छे. मंत्रीश्वरे अहीं विविधप्रकारी स्नात्रमहोत्सव भव्य रीते कर्यो हतो तेनुं रसिक वर्णन धर्माभ्युदयकारे अहीं त्रण श्लोकोमा विस्तारवडे रच्युं छे. ते दानवीरे त्या अनेक प्रकारे दानधर्मो अने पूजामहोत्सवो रच्या हता. संघ आठ दिवस रह्यो त्यां सुधी अष्टाह्निका महोत्सव भारे दबदबा साथे कर्यो. आदिनाथ भगवानना मंदिरपासे नृत्य गान करवा माटे मंत्रिवरे इन्द्रमंडप बंधाग्यो हतो । १ लाटगौडमरुकच्छडाहलावन्तिवाविषयाः समन्ततः। तत्र संघपतयः समाययुस्खोयधाविव समस्तसिन्धवः ॥२५॥ आगतां विविधदेशतस्ततः सैष सङ्घजनता प्रमोदभाक् । वस्तुपालसचिवः शुचिक्रियः सच्चकार विविधरुपायनैः ॥ २६ ॥ __-वसन्तविलास, सर्ग १० २ वितन्वतः कासहृदाख्यपत्तने महोत्सर्व नामितनजसद्मनि । सहायता प्रत्यशृणोन्महामतेरमुष्य द्राग्वम॑नि देवताम्बिका ॥ १६॥ - सुकृतसंकीर्तन, सर्ग ५ ३ उत्प्रयाणकमचीकरस्कृती संघलोकसुखदप्रयाणकः । संघराट् बलभिपत्तनावनीमण्डलेऽतिसुरमण्डलेश्वरः॥४२॥ तत्र सङ्कपतये नवेन्दुवत्पावनो विमलसंशितो गिरिः। अंगुलीकिसलयाप्रसंशया दर्शितो विजयसेनसूरिभिः ।। ४३॥ - वसन्तविकास, सर्ग १० ४ तत्र मात्रमहोत्सवव्यसनिनं मार्तण्डचण्डद्युति, क्लान्तं सङ्घजनं निरीक्ष्य निखिलं साद्रीभवन्मानसः । सद्यो माद्यदमन्दमेदुरतरश्रद्धानिधिः शुद्धधीमत्रीन्द्रः खयमिन्द्रमण्डपमयं प्रारम्भयामासिवान् ॥८॥ -धर्माभ्युदय, सर्ग १० ५ जुओ-वसंतविलास, सर्ग १०, श्लोक ५८ थी ८३ ., ६ सुकृत्तसंकीर्तन, श्लोक १२ थी ४२
SR No.010638
Book TitleDharmabhyudaya Mahakavya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChaturvijay, Punyavijay
PublisherBharatiya Vidya Bhavan
Publication Year1949
Total Pages284
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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