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ग्रन्थपरिचय . प्रख्यात कवि सोमेश्वरे 'कीर्तिकौमुदी' ग्रन्थ तेमना जीवन अने कवनगें स्तवन करवा रच्यो छे. आ सिवाय 'सुरथोत्सव' अने 'उल्लाघराघव'ना छेल्ला सोमां पोतानी प्रशस्ति साथे वस्तुपाळना जीवनने लगती ट्रंक हकीकत आपी छे. तेणे बंधावेला गिरनार अने आबू उपरना मंदिरोनी प्रशस्ति रचनार आ ज कवि हतो. तेमां पण वस्तुपालना चरित्र अने सत्कर्मो माटे ढूंक नोंध करी छे. वीजा एक अरिसिंह 'नामक कविए वस्तुपाळना जीवन साथे तेणे करेलां सुकृत कार्योर्नु विवेचन करवा 'सुकृतसंकीर्तन' नामक ग्रन्थ रच्यो छे जेमांथी चावडा अने चौलुक्योनो पण केटलोक इतिहास मळी आवे छे. जयसिह सूरिए 'हम्मीरमदमर्दन' नाटक अने 'वस्तुपाल प्रशस्ति' काव्यो रच्यां छे. तेमां वस्तुपालनी युद्धकुशळता अने हम्मीर साथे थयेल युद्ध प्रसंगने नाटकना रूपमा योज्या छे. आ वधामा नवीन भात पाडतां तेमनां गुरु उदयप्रभसूरिविरचित 'धर्माभ्युदय' अने 'सुकृतकीर्तिकल्लोलिनी' काव्यो छे. एमांना 'धर्माभ्युदय' काव्यतुं विस्तृत विवेचन प्रस्तुत लेखमां करवान होवाथी तेनो परिचय आगळ उपर विस्तारथी आपवामां आव्यो छे ज. 'कीर्तिकल्लोलिनी' ग्रन्थ एक सर्वोत्कृष्ट काव्य छे. तेनी प्रासादिकता, आलंकारिकता अने पद्यरचना उत्कृष्ट प्रकारना जोवामां आवे छे. 'सुकृतसंकीर्तन नी माफक तेनी शरुआत वनराजयी करवामां आवी छे. तेमां चावडा अने चौलुक्योनो क्रमवद्ध इतिहास आप्या पछी वस्तुपालवंशवर्णन, वस्तुपाळत्वरित्र अने तेनां धर्मकार्योनी ढूंक नोंध आलंकारिक भाषामां रजु करी छे. आ वां कान्योनी रचना वस्तुपाळनी समकालीन छे एटले तेमनी ऐतिहासिकताना विषयमां शंकाने अवकाश नथी. कदाच प्रशंसात्मक वर्णनोमा अलंकारयुक्त हकीकतो. मूकी होय ते खाभाविक छे. - बालचंद्रसूरिए 'वसंतविलास' काव्य रच्यु छे जेमा वस्तुपाळनुं जीवनवृत्त अने तेना सत्कार्योर्नु विस्तृत वर्णन संस्कारी भाषामां आप्यु छे. वस्तुपाळना जीवन बाद तरत ज रचाएला अन्योमां आ मुख्य छे. कारण के ते वस्तुपाळना मरणबाद थोडांक ज वर्षोमां रचायो छे. आ सिवाय मेरुतुंगकृत 'प्रबंधचिंतामणि', जिनप्रभरचित 'तीर्थकल्प', राजशेखरकृत 'चतुर्विंशतिप्रबंध'मां पण वस्तुपालना जीवनने स्पर्श करती केटलीक हकीकत नोंधाई छे. छेल्लामा छेल्लु व्यवस्थित रीते रचायेलं जिनहर्पकृत 'वस्तुपालचरित्र छे जेमा केटलीक अनन्य हकीकतो सचवाई छे. ते मोटे भागे 'कीर्तिकौमुदी' अने 'चतुर्विशतिप्रबंध'ना आधार उपर रचवामां आव्युं छे.
गूर्जर भाषामां हीरानंदसूरि, लक्ष्मीसागरसूरि, पार्श्वचंद्र अने समयसुंदर वगेरेए 'वस्तुपाल रासा'ओ रच्या छे जे लगभग संस्कृत काव्य ग्रंथोने अनुरूप छे. वर्तमान युगमा केटलाक विद्वानोए तेमना चरित्रने ऐतिहासिक दृष्टिए अवलोक्युं छे. ख. चीमनलाल डाह्याभाई दलाले 'सुकृतसंकीर्तन', 'वसंतविलास', 'हम्मीरमदमर्दन' अने 'नरनारायणानंद'नी प्रस्तावनामां तत्संबंधी विद्वत्तापूर्ण संशोधनो कर्या छे.
आ सिवाय ख. वल्लभजी आचार्ये 'कीर्तिकौमुदी'ना गुजराती भाषांतरनी प्रस्तावनामां, श्री. झवेरी जीवणचंद साकरचंदे 'जैनपत्र'ना अंकमां अने श्री नरहरिभाई परिखे 'मधपूडा'मां वस्तुपाळना जीवन संबंधी लेखो लख्या छे. 'नागरी प्रचारिणी पत्रिका' भा. ४ ना अंक पहेलामां श्री. शिवराम शर्माए "सोमेश्वरदेव और कीर्तिकौमुदी' नामक विवेचनपूर्ण निबंध लख्यो छे. आ वधानो समन्वय साधी श्री मोहनलाल . दलीचंद देशाईए 'जैन साहित्यना संक्षिप्त इतिहास'मां वस्तुपालचरित्र अने तेना साहित्यनी सुंदर समालोचना करी छे. आ बधा ग्रन्थोनी हकीकत लगभग एक बीजाने मळती आवे छे. केटलाकमां तेनां सुकृत कार्यों अने वर्णनोनी वधघट जोवामां आवे छे. उपर्युक्त ग्रंथो पैकी घणाखरा बल्के 'धर्माम्युदयकाव्य' सिवायना वधा प्रन्यो प्रकाशित यया छे. हवे आ ऐतिहासिक अने धार्मिक दृष्टिविंदु रजु करतो